________________ द्वितीय शतक : उद्देशक [239 वासुदेव, प्रतिवासुदेव, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका और मनुष्य हैं, वहाँ तक मनुष्यलोंक कहलाता है / जहाँ तक समय, आवलिका आदि काल है, स्थूल विद्य त् है, मेघगर्जन है,मेघों की पंक्ति बरसती है, स्थूल अग्नि है, आकर, निधि, नदी, उपराग (चन्द्र-सूर्यग्रहण) है, चन्द्र, सूर्य, तारों का प्रतिगमन (उत्तरायण) और निर्गमन (दक्षिणायन) है, तथा रात्रि-दिन का बढ़ना-घटना इत्यादि है, वहाँ तक समयक्षेत्र-मनुष्यक्षेत्र है।' // द्वितीय शतक : नवम उद्देशक समाप्त / / 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति पत्रांक 145 (ख) जीवाभिगम सूत्र, क. पा. 792-803 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org