________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-८ ] [237 के 32 हजार देवों के 32 हजार भद्रासन हैं। पश्चिम में 7 सेनाधिपतियों के सात और चारों दिशाओं में आत्मरक्षक देवों के 64-64 हजार भद्रासन हैं। विजयदेवसभावत् चमरेन्द्रसभावर्णन-(१) उपपात-सभा में तत्काल उत्पन्न हुए इन्द्र को यह संकल्प उत्पन्न होता है कि मुझे पहले क्या और पीछे क्या कार्य करना है ? मेरा जीताचार क्या है ?, (2) अभिषेक-फिर सामानिक देवों द्वारा बड़ी ऋद्धि से अभिषेकसभा में अभिषेक होता है / (3) अलंकार-सभा में उसे वस्त्राभूषणों से अलंकृत किया जाता है। (4) व्यवसाय-सभा में पुस्तक का वाचन किया जाता है, (5) सिद्धायतन में सिद्ध भगवान् के गुणों का स्मरण तथा भाववन्दनपूजन किया जाता है। फिर सामानिक देव आदि परिवार सहित सुधर्मासभा (चमरेन्द्र की) में आते हैं। // द्वितीय शतक : अष्टम उद्देशक समाप्त // - - --- --- - 1. (क) भगवती अ. वृत्ति पत्रांक 145-146 (ख) जीवांभिगम 521-632 क. आ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org