________________ 2236 ] [व्याख्याप्राप्तिसूत्र करने के पश्चात् यहाँ असुरकुमारों के इन्द्र-राजा चमर को चमरचंचा नाम की राजधानी है। उस राजधानी का आयाम और विष्कम्भ (लम्बाई-चौड़ाई) एक लाख योजन है / वह राजधानी जम्बू द्वीप जितनी है। (उसका प्राकार (कोट) 150 योजन ऊँचा है / उसके मूल का विष्कम्भ 50 योजन है। उसके ऊपरी भाग 'काविष्कम्भ साढ़े तेरह योजन है। उसके कपिशीर्षकों (कंगरों) की लम्बाई प्राधा योजन और विष्कम्भ एक कोस है। कपिशीर्षकों की ऊँचाई आधे योजन से कुछ कम है। उसकी एक-एक भुजा में पांच-पांच सौ दरवाजे हैं। उसकी ऊँचाई 250 योजन है। ऊपरी तल (उवारियल ? घर के पीठबन्ध जैसा भाग) का आयाम और विष्कम्भ (लम्बाई-चौड़ाई) सोलह हजार योजन है / उसका परिक्षेप (धेरा) 50597 योजन से कुछ विशेषोन है। यहाँ समग्र प्रमाण वैमानिक के प्रमाण से आधा समझना चाहिए। उत्तर पूर्व में सुधर्मासभा, जिनगृह, उसके पश्चात् उपपातसभा, हृद, अभिषेक सभा और अलंकारसभा; यह सारा वर्णन विजय की तरह कहना चाहिए। (यह सब भी सौधर्म-वैमानिकों से प्राधे-साधे प्रमाण वाले हैं / ) (गाथार्थ-.) उपपात, (तत्काल उत्पन्न देव का) * संकल्प, अभिषेक, विभूषणा, व्यवसाय, अर्चनिका और सिद्धायतन-सम्बन्धी गम, तथा चमरेन्द्र का परिवार और उसकी ऋद्धिसम्पन्नता ((आदि का वर्णन यहाँ समझ लेना चाहिए।) विवेचन-असुरकुमार-राज चमरेन्द्र को सुधर्मासमा प्रांदि का वर्णन प्रस्तुत अष्टम उद्देशक में एक सत्र द्वारा अनेक पर्वत, द्वीप समुद्रों के अवगाहन के पश्चात् आने वाली चमरेन्द्र का राजधाना चमरचंचा का विस्तृत वर्णन किया गया है। उत्पातपर्वत आदि शब्दों के विशेषार्थ-तिरछालोक में जाने के लिए इस पर्वत पर पाकर चमर उत्पतन करता-उड़ता है, इससे इसका नाम उत्पात पर्वत पड़ा है। मुकुन्द = मुकुन्द एक प्रकार का वाद्य विशेष है / अभिसेय सभा अभिषेक करने का स्थान / पद्मवरवेदिका का वर्णन-श्रेष्ठ 'पद्मवेदिका की ऊँचाई आधा योजन, विष्कम्भ पांच सौ धनुष्य है, वह सर्वरत्नमयी है / उसका परिक्षेप तिगिच्छकूट के ऊपर के भाग के परिक्षेप जितना है / वनखण्ड वर्णन वनखण्ड का चक्रवाल विष्कम्भ देशोन दो योजन हैं। उसका परिक्षेप पदमवरवेदिका के परिक्षय जितना है। वह काला हैं, काली कान्ति वाला है. इत्यादि / उत्पातपर्वत का ऊपरितल-अत्यन्त सम एवं रमणीय है। वह भूमिभाग मुरज-मुख, मृदंग"पुष्कर या सरोवरतल के समान है; अथवा आदर्श-मण्डल, करतल या चन्द्रमण्डल के समान है। 'प्रासादावतंसक बह प्रासादों में शेखर अर्थात् सर्वोपरि सर्वश्रेष्ठ प्रासाद बादलों की तरह ऊँचा, और अपनी चमक-दमक के कारण हंसता हुआ-सा प्रतीत होता है। वह प्रासाद कान्ति से श्वेत "और प्रभासित है। मणि, स्वर्ण और रत्नों की कारीगरी से विचित्र है / उसका ऊपरी भाग भी सुन्दर है। उस पर हाथी, घोड़े, बैल आदि के चित्र हैं। चमरेन्द्र का सिंहासन-यह प्रासाद के बीच में है। इस सिंहासन के पश्चिमोत्तर में, उत्तर में तथा उत्तरपूर्व में चमरेन्द्र के 64 हजार सामानिक देवों के 64 हजार भद्रासन हैं। पूर्व में पाँच पटरानियों के 5 भद्रासन सपरिवार हैं। दक्षिण-पूर्व में आभ्यन्तर परिषद् के 24 हजार देवों के 24 हजार, दक्षिण में मध्यमपरिषद् के 28 हजार देवों के 28 हजार और दक्षिण-पश्चिम में बाह्यपरिषद् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org