________________ सत्तावीसइमं सयं : करिंसु सयं सत्ताईसवां शतक : "किया था' इत्यादि शतक प्रथम से लेकर ग्यारहवें उद्देशक तक छब्बीसवें शतक की वक्तव्यतानुसार ज्ञानावरणोयादि पापकर्मकरण-प्ररूपणा 1. जीवे णं भंते ! पावं कम्मं किं करिसु, करेति, करिस्सति; करिसु, करेति, न करेस्सति; करिसु, न करेइ, करिस्सति; करिसु, न करेइ, न करेस्सइ ? / गोयमा ! प्रत्यंगतिए करिसु, करेति, करिस्सति; अत्थेगतिए करिसु, करेति, न करिस्सति; अत्थेगतिए करितु, न करेति, करेस्सति; प्रथेगतिए करिसु, न करेति, न करेस्सति / [1 प्र.] भगवन् ! (1) क्या जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा? (2) अथवा किया था, करता है और नहीं करेगा ? या (3) किया था नहीं करता और करेगा? (4) अथवा किया था, नहीं करता और नहीं करेगा ? [1 उ.] गौतम ! (1) किसी जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा। (2) किसी जीव ने किया था, करता है और नहीं करेगा / (3) किसी जीव ने किया था, नहीं करता है और करेगा। (4) किसी जीव ने किया था, नहीं करता है और नहीं करेगा। 2. सलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कम्म? एवं एएणं अभिलावेणं जच्चेव बंधिसते वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियध्वा, सह चेक नवदंडगसंगहिया एक्कारस उद्देसगा भाणितम्वा / // सत्तावीसइमस्स सयस्स एक्कारस-उद्देसगा समत्ता / / 27 / 1-11 // // सत्तावीसइमं सयं : कारसुसयं समत्तं // 27 // [2 प्र] भगवन् ! सलेश्य जीव ने पापकर्म किया था ? इत्यादि पूर्वोक्त बन्धिशतकानुसार सभी प्रश्न / [2 उ.] (गौतम ! ) बन्धीशतक (छब्बीसवें शतक) में जो वक्तव्यता इस (पूर्वोक्त) अभिलाप (पाठ) द्वारा कही थी, वह सभी यहाँ कहनी चाहिए तथा उसी प्रकार नौ दण्डकसहित ग्यारह उद्देशक भी यहाँ कहने चाहिए। विवेचन-छव्वीसवें और सत्ताईसवें शतक में अन्तर—जिस प्रकार छव्वीसवें शतक में प्रत्येक प्रश्न के प्रारम्भ में 'बंधी' शब्द का प्रयोग किया गया होने से वह 'बंधीशतक' कहलाता है, किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org