________________ - [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पायुकर्म-बन्ध के विषय में नैरयिक में पहला और तीसरा भंग पाया जाता है। प्रथम भंग का घटित होना स्पष्ट है। तीसरे भंग की घटना इस प्रकार है-उसने आयुकर्म बांधा था, वर्तमान में (अबन्धकाल में) नहीं बांधता, परन्तु भविष्य में बन्धकाल में बांधेगा, क्योंकि यह अचरम है। इसमें दूसरा और चौथा भंग घटित नहीं हो सकता, क्योंकि अचरम होने से आयु का बन्ध अवश्य करेगा, इसलिए दूसरा भंग नहीं बनता अन्यथा उसका अचरमत्व ही नहीं हो सकता और इसी यूक्ति से चौथा भंग भी घटित नहीं होता। शेष पदों की घटना पूर्ववत् कर लेनी चाहिए।' // छन्वीसवां शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक सम्पूर्ण // ॥छन्वीसवाँ बन्धीशतक समाप्त / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 937-938 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3583 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org