________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र इस सत्ताईसवें शतक में प्रत्येक प्रश्न के प्रारम्भ में 'करिसु' पद प्रयुक्त हुआ है, इसलिए इसे 'करिसुशतक' कहते हैं। सत्ताईसवें शतक के सभी प्रश्न और उनके उत्तर छवीसवें शतक के समान हैंविषय में थोड़ा अन्तर है. छब्बीसवें में त्रैकालिक पापकर्मबन्ध-सम्बन्धी' प्रश्न हैं, जबकि सत्ताईसवें शतक में अकालिक पापकर्मकरण-सम्बन्धी प्रश्न हैं। शंका -छव्वीसवें शतक में प्रयुक्त 'बन्ध' और सत्ताईसवें शतक में प्रयुक्त 'करण' में क्या अन्तर है ? समाधान–यद्यपि 'बन्ध' और 'करण' में कोई अन्तर नहीं है, तथापि यहाँ पृथक शतक के रूप में कथन करने का कारण यह है कि शास्त्रकार इस सिद्धान्त का प्रतिपादन करना चाहते हैं कि जीव की जो कर्मबन्ध-क्रिया है, वह जीवकृत ही है, अर्थात्-वह कर्मबन्ध-किया जीव के द्वारा ही हुई है, ईश्वरादिकृत नहीं। अथवा-'बन्ध' का अर्थ है - सामान्यरूप से कर्म को बांधना, जबकि 'करण' का अर्थ है-कर्मों को निधत्तादिरूप से बांधना, जिससे विपाकादिरूप से उनका फल अवश्य भोगना पड़े, इत्यादि तथ्यों को व्यक्त करने के लिए 'बन्ध' और 'करण' का पृथक्-पृथक कथन किया है। // सत्ताईसवाँ 'करिसु' शतक सम्पूर्ण / 1. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3585 2. (क) वही (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3585-3586 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 938 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org