________________ सत्तमो उद्देसो : देव सप्तम उद्देशक : देव देवों के प्रकार, स्थान, उपपात, संस्थान आदि का वर्णन 1. कइ णं भंते ! देवा पण्णता? गोयमा ! चउबिहा देवा पण्णत्ता, तं जहा-मवणवति-वाणमंतर-जोतिस-वेमाणिया। [1 प्र.] भगवन् ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [1 उ.] गौतम ! देव चार प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार हैं-भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक / 2. कहि णं भंते ! भवणवासीणं देवाणं ठाणा पण्णता? गोयमा ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए जहा ठाणपदे देवाणं वत्तव्वया सा भाणियन्वा / उववादेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। एवं सव्वं भाणियन्वं जाव (पण्णवणासुत्तं सु. 177 त : 211) सिद्धगंडिया समत्ता। "कप्पाण पतिद्वाणं बाहल्लुच्चत्तमेव संठाणं / " जीवाभिगमे जो वेमाणियुद्देसो सो भाणियन्दो सम्वो। // बितीय सए सत्तमो उद्देसो समत्तो।। [2 प्र. भगवन् ! भवनवासी देवों के स्थान कहाँ पर कहे गए हैं ? [2 उ.] गौतम ! भवनवासी देवों के स्थान इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे हैं; इत्यादि देवों की सारी वक्तव्यता प्रज्ञापनासूत्र के दूसरे स्थान-पद में कहे अनुसार कहनी चाहिए 1 किन्तु विशेषता इतनी है कि यहाँ भवनवासियों के भवन कहने चाहिए / उनका उपपात लोक के असंख्यातवें भाग में होता है / यह समग्र वर्णन सिद्ध सिद्धगण्डिकापर्यन्त पूरा कहना चाहिए। कल्पों का प्रतिष्ठान (आधार) उनकी मोटाई, ऊँचाई और संस्थान आदि का सारा वर्णन जीवाभिगमसूत्र के वैमानिक उद्देशक पर्यन्त कहना चाहिए / विवेचन-देवों के प्रकार, स्थान, उपपात, संस्थान प्रादि का वर्णन-प्रस्तुत सप्तम उद्देशक के दो सूत्रों के द्वारा देवों के प्रकार, स्थान आदि के तथा आधार, संस्थान आदि के वर्णन को प्रज्ञापना सूत्र एवं जीवाभिगम सूत्र द्वारा जान लेने का निर्देश किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org