________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-६ ] [ 231 त्याग वचनयोग से। ग्रहणकाल-जधन्य एक समय, उत्कृष्ट प्रसंख्येय समय, त्यागकाल-जघन्य दो समय, उत्कृष्ट असंख्येय सामयिक अन्तमुहूर्त / (11) किस योग से, किस निमित्त से, कौन सी भाषा-ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से और मोहनीयकर्म के उदय से, वचनयोग से असत्या और सत्या-मृषा भाषा बोली जाती है, तथा ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणोय के क्षयोपशम से सत्य और असत्या मषा-भाषा बोली जाती है, तथा ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय के क्षयोपशम से सत्या और असत्याऽऽमषा (व्यवहार) भाषा वचनयोग से बोली जाती है / (12) भाषकअभाषक-अपर्याप्त-जीव, एकेन्द्रिय, सिद्ध भगवान् और शैलेशो प्रतिपन्न जीव अभाषक होते हैं / शेष सब जीव भाषक होते हैं। (13) अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े सत्य भाषा बोलने वाले, उनसे असंख्यातगुने मिश्र भाषा बोलने वाले, उनसे असंख्यातगुना असत्य भाषा बोलने वाले, उनसे असंख्यातगुने व्यवहार भाषा बोलने वाले हैं तथा उनसे अनन्त गुने अभाषक जीव हैं।' // द्वितीय शतक: छठा उद्देशक समाप्त / / 1. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति पत्रांक 142 (ख) पण्णवणासुत्तं मूलपाठ पृष्ठ 214-215 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org