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________________ 228 / | व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र रायगिहस्स नगरस्स बहिया वेभारस्स पब्बयस्स अहे एत्थ णं महं एगे हरए अप्पे (अधे) पण्णते, प्रणेगाइं जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं नाणादुमसंडमंडिउद्देसे सस्सिरीए जाव पडिरूपे / तत्थ णं बहवे पोराला बलाया संसेयंति सम्मुच्छंति वासंति तव्वतिरित्ते य णं सया समियं उसिणे 2 आउकाए अभिनिस्सवइ / से कहमेतं भंते ! एवं ? गोयमा ! जं गं ते अण्णउत्थिया एयमाइक्खंति जाव जे ते एवं परूवति मिच्छं ते एवमाइवखंति जाव सव्वं नेयत्वं / प्रहं पुण गोतमा ! एवमाइक्खामि भा० 50 ५०-एवं खलु रायगिहस्स नगरस्स बहिया वेमारस्स पन्वतस्स अदूरसामंते एत्थ णं महातवोक्तीरप्पभवे नाम पासवणे पण्णते, पंच धणुसताणि पायाम-विक्खंमेणं नाणादुमसंडमंडिउसे सस्सिरीए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे / तत्थ णं बहवे उसिणजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताए वक्कमति विउक्कमति चयंति उववज्जति तन्वतिरित्ते वि य ण सया समितं उसिणे 2 अाउयाए अमिनिस्सवति-एस णं गोतमा ! महातवोवतीरप्पभवे पासवणे, एस णं गोतमा ! महातवोवतीरप्पभवस्स पासवणस्स अट्रे पण्णत्ते / सेवं भंते ! 2 ति भगवं गोयमें समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति / // बितीय सए पंचमो उद्देसो समत्तो॥ [27 प्र.] भगवन् ! अन्यतीथिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि 'राजगह नगर के बाहर वैभारगिरि के नीचे एक महान् (बड़ा भारी) पानी का ह्रद (कुण्ड) है / उसकी लम्बाई-चौड़ाई (पायाम-विष्कम्भ) अनेक योजन है। उसका अगला भाग (उद्देश) अनेक प्रकार के वृक्षसमूह से सुशोभित है, वह सुन्दर (श्रीयुक्त) है, यावत् प्रतिरूप (दर्शकों की आँखों को सन्तुष्ट करने वाला) है / उस हद में अनेक उदार मेघ संस्वेदित (उत्पन्न होते (गिरते) हैं, सम्भूछित होते (बरसते) हैं। इसके अतिरिक्त (कुण्ड भर जाने के उपरान्त) उसमें से सदा परिमित (समित) गर्म-गर्म जल (अप्काय) झरता रहता है। भगवन् ! (अन्यतीथिकों का) इस प्रकार का कथन कैसा है ? क्या यह (कथन) सत्य है ? [27 उ.] हे गौतम ! अन्यतीथिक जो इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं, और प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर के बाहर...... यावत्..... गर्म-गर्म जल झरता रहता है, यह सब (पूर्वोक्त वर्णन) वे मिथ्या कहते हैं; किन्तु हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बतलाता हूँ और प्ररूपणा करता हूँ, कि राजगृह नगर के बाहर वैभारगिरि के निकटवर्ती एक महातपोपतीर-प्रभव नामक झरना (प्रस्त्रवण) (बताया गया) है। वह लम्बाई-चौड़ाई में पांच-सौ धनुष है / उसके आगे का भाग (उद्देश) अनेक प्रकार के वृक्ष-समूह से सुशोभित है, सुन्दर है, 1. 'अधे' के स्थान में 'अप्पे पाट ही संगत लगता है, अर्थ होता है आच्य पानी का। 2. वर्तमान में भी यह गर्म पानी का कुण्ड राजगृह में वैभारगिरि के निकट प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। वास्तव में यह पर्वत में से झर-झर कर भरने के रूप में ही प्राकर इस कुण्ड में गिरता है। कुण्ड स्वाभाविक नहीं है, यह तो सरकार द्वारा बना दिया गया है। बहुतसे यात्री या पर्यटक आकर धर्मबुद्धि से इसमें नहाते हैं, कई चर्मरोगों को मिटाने के लिए इसमें स्नान करते हैं / इटली के प्रारमिश्रा के निकट भी एक ऐमा झरना है, जिसमें सदियों में गर्म पानी होता है और गर्मियों में बर्फ जैसा ठंडा पानी रहता है। (देखें-संसार के 1500 अद्भत आश्चर्य भाग 2. पृ.१५९)—सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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