________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिमून कम्मप्पगडीनो उदोरेइ, छ उदोरेमाणे आउय-वेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मप्पगडीयो उदीरेइ, पंच उदोरेमाणे प्राज्य-वेयणिज्ज-मोहणिज्जवज्जाओ पंच कम्मप्पगडोयो उदीरेइ / ल की उदीरणा के विषय में प्रश्न / [164 उ. गौतम ! वह सात, आठ, छह या पांच कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। सात की उदीरणा करता है तो पायष्य को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है, पाठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण पाठ कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है और छह की उदीरणा करता है तो प्रायुष्य और वेदनीय को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है तथा पांच की उदीरणा करता है तो आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़कर, शेष पांच कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। 165. नियंठे० पुच्छा। गोयमा ! पंचविहउदीरए वा, दुविहउदीरए वा। पंच उदीरेमाणे पाउय-वेयणिज्जमोहणिज्जवज्जाश्रो पंच कम्मप्पगडीओ उदीरेइ, दो उदोरेमाणे नामं च गोयं च उदीरेइ / [165 प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? [165 उ.] गौतम ! वह या तो पांच कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है, अथवा दो कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है / जब वह पांच की उदोरणा करता है तब अायुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़कर शेष पांच कर्मप्रकृतियों की उदी रण करता है / दो की उदी रणा करता है तो नाम और गोत्र कर्म को उदोरणा करता है / 166. सिणाए० पुच्छा। गोयमा ! दुविहउदीरए वा, अणुदीरए वा। दो उदोरेमाणे नामं च गोयं च उदोरेइ / [बार 23] / {166 प्र.] भगवन् ! स्नातक कितनी कर्मप्रकृतियों की उदी रणा करता है ? [166 उ.] गौतम ! या तो वह दो की उदोरणा करता है अथवा बिलकुल उदीरणा नहीं करता / जब दो की उदीरणा करता है तो नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है / [तेईसवाँ द्वार विवेचन--कौन कितने कर्मों की उदोरणा करता है ? पुलाक प्रायुष्य और वेदनीय कर्म की उदीरणा नहीं करता, क्योंकि उसके उदीरणा करने योग्य तथाविध अध्यवसाय नहीं होते, किन्तु पहले वह इन दोनों कर्मों की उदीरणा करके बाद में पुलाकत्व को प्राप्त होता है। इसी प्रकार आगे जिन-जिन कर्मप्रकृतियों की उदीरणा का निषेध किया गया है, उन-उन कर्मप्रकृतियों की पहले उदीरणा करके पीछे बकुशादित्व को प्राप्त करता है / स्नातक सयोगी अवस्था में नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है तथा आयुष्य और वेदनीय कर्म की उदीरणा तो सातवें गुणस्थान में ही बन्द हो जाती है / अयोगी अवस्था में तो वह अनुदीरक ही होता है।' 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 904 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भाग 7, प. 3409 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org