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________________ पस्वीसका मत : उद्देशक 160. सिणाए णं भंते ! * पुच्छा / गोयमा ! वेदणिज्जाउय-नाम-गोयानो चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेति / [दार 22] / [16. प्र. | भगवन् ! स्नातक कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? 1160 उ.] गौतम ! वह वेदनीय, प्रायुष्य, नाम और गोत्र, इन चार कर्मप्रकृतियों का बेदन करता है। बाईसवाँ द्वार विवेचन-निष्कर्ष --- पुलाक से लेकर कषायकशील तक पाठों कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं। निर्ग्रन्थ मोहनीय को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं, क्योंकि उनका मोहनीय या तो उपशान्त हो जाता है या क्षीण हो जाता है / चार घातिको का क्षय हो जाने से स्नातक वेदनीयादि चार अघातिकर्मों का ही वेदन करते हैं।' तेईसवाँ कर्मोदीरणाद्वार : कर्मप्रकृति-उदोरणा-प्ररूपणा 161. पुलाए णं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ उदीरेइ ? गोयमा ! पाउय-बेयणिज्जवज्जानो छ कम्मपगडीमो उदीरेइ / [161 प्र.] भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों की उदी रणा करता है ? [161 उ.] गौतम ! वह आयुष्य और वेदनीय के सिवाय शेष छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। 162. बउसे० पुच्छा। गोयमा ! सत्तविधउदीरए बा, प्रदविहउदीरए वा, छविहउदीरए वा / सत्त उदीरेमाणे प्राउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडोश्रो उदीरेइ, अट्ट उदीरेमाणे पडिपुण्णाश्रो अट्ठ कम्मष्पगडीयो उदीरेइ, छ उदोरेमाणे प्राउय-वेयणिज्जबज्जाश्रो छ कम्मध्पगडीओ उदोरेति / [162 प्र. भगवन् ! बकुश कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? [162 उ.] गौतम ! वह सात, पाठ या छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है / सात की उदीरणा करता हुआ आयुष्य को छोड़कर सात कर्म प्रकृतियों को उदीरता है, पाठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण पाठ कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है तथा छह की उदीरणा करता है तो आयुष्य और वेदनीय को छोड़कर छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करना है। 163. पउिसेवणाकुसोले एवं चेव / [163] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में जानना चाहिए। 164. कसायकुसीले० पुच्छा। गोयमा ! सत्तविहउदीरए वा, अट्टविहउदीरए वा छरिवहउदीरए वा, पंचविहउदोरए वा। सस उदीरेमाणे पाउयवज्जाश्रो सत्त कम्मप्पगडोत्रो उदीरेइ, अट्ट उदीरेमाणे परिपुण्णाओ अट्ट 1. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भाग 7, पृ. 3406 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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