________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 6] चौवीसवाँ उपसम्पद-जहद द्वार : स्वस्थानत्याग-परस्थानसम्प्राप्ति-निरूपण 167. पुलाए णं भंते ! पुलायत जहमाणे किं जहति ? कि उवसंपज्जइ ? गोयमा ! पुलायत्तं जहति; कसायकुसोलं वा असंजमं वा उवसंपज्जा / [167 प्र.] भगवन् ! पुलाक, पलाकपन को छोड़ता हुमा क्या छोड़ता है और क्या प्राप्त करता है ? [167 उ.] गौतम ! वह पूलाकपन का त्याग करता है और कषायकुशीलपन या असंयम को प्राप्त करता है। 168. बउसे गं भंते ! बउसतं जहमाणे किं जहति ? कि उपसंपज्जइ ? गोयमा ! बउसत्तं जहति; पडिसेवणाकुसोलं वा, कसायकुसीलं वा, असंजमं वा, संजमासंजमं वा उपसंपज्जइ। [168 प्र.] भगवन् ! बकुश बकुशत्व का त्याग करता हुआ क्या छोड़ता है और क्या प्राप्त करता है ? [168 उ.] गौतम ! वह बकुशत्व का त्याग करता है और प्रतिसेवनाकुशीलत्व, कषायकुशीलत्व, असंयम या संयमासंयम को प्राप्त करता है। 166. पउिसेवणाकुसोले णं भंते ! पडिसेवणाकुसोलत्तं जहमाणे० पुच्छा। गोयमा ! पडिसेवणाकुसीलत्तं जहति; बउस बा, कसायकुसीलं वा, असंजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंपज्जा / [166 प्र.] भगवन् ! प्रतिसेवनाकुशील प्रतिसेवनाकुशीलत्व को छोड़ता हुआ क्या छोड़ता है और क्या पाता है ? [166 उ.] गौतम ! वह प्रतिसेवनाकुशीलत्व को छोड़ता है, और बकुशत्व, कषायकुशीलत्व, असंयम या संयमासंयम को पाता है। 170. कसायकुसीले० पुच्छा। गोयमा ! कसायकुसोलतं जहइ; पुलायं था, बउसं वा, पडिसेवणाकुसीलं का, नियंठं या, प्रस्संजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंपज्जइ / 170 प्र.] भगवन् ! कषायकुशील, कषायकुशीलत्व को छोड़ता हुआ क्या त्यागता है और क्या पाता है ? [170 उ.] गौतम ! वह कषायकुशीलत्व को छोड़ता है और पुलाकत्व, बकुशत्व, प्रतिसेवनाकुशीलत्व, निर्ग्रन्थत्व, असंयम अथवा संयमासंयम को प्राप्त करता है / 171. णियंठे० पुच्छा। गोयमा ! नियंठत्तं जहति; कसायकुसीलं वा, सिणायं वा, अस्संजमं वा, उवसंपज्जइ / [171 प्र.] भगवन् ! निर्गन्थ, निग्रंथता का त्याग करता हुआ क्या छोड़ता है और क्या प्राप्त करता है? Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org