________________ 408] [এমবি अर्थात्-श्रमणी (साध्वी), वेदरहित, परिहार-विशुद्धि-चारित्री, पुलाक, अप्रमत्त-संयत (सप्तम-गुणस्थानवर्ती), चौदह पूर्वधारी और आहारक-लब्धिमान, इनका कोई संहरण नहीं करता। कठिन-शब्दार्थ-पलिभागे-समानकाल में / अभहियं-अधिक अत्यधिक / ' तेरहवाँ गतिद्वार : पंचविध निग्रन्थों की गति, पदवी तथा स्थिति की प्ररूपणा 73. [1] पुलाए णं भंते ! कालगए समाणे कं गतिं गच्छति ? गोयमा ! देवर्गात गच्छति / [73-1 प्र.} भगवन ! पुलाक मरण पाकर किस गति में जाता है ? [73-1 उ.] गौतम ! वह देवगति में जाता है। [2] देवति गच्छमाणे कि भवणवासीसु उववज्जेज्जा, वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा, जोतिसवेमाणिएसु उववज्जेज्जा? | गोयमा ! नो भवणवासोसु, नो वाणमंतरेसु, नो जोतिसेसु वेमाणिएसु, उववज्जेज्जा / वेमाणिएसु उववज्जमाणे जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे उववज्जेज्जा। [73-2 प्र.] भगवन् ! यदि वह देवगति में जाता है तो क्या भवनपतियों में उत्पन्न होता है या वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है ? [73-2 उ. गौतम ! वह भवनपतियों, वाणव्यन्तरों तथा ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न नहीं होता, किन्तु वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है / वैमानिक देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट सहस्रारकल्प में उत्पन्न होता है / 74. बउसे णं०? . एवं चेव, नवरं उक्कोसेणं अच्चए कप्पे। [74] बकुश के विषय में भी इसी प्रकार जानना ; किन्तु वह उत्कृष्टत: अच्युत देवलोक में उत्पन्न होता है। 75. पडिसेवणाकुसोले जहा बउसे। 175] प्रतिसेवना-कुशील को वक्तव्यता भी बकुश के समान जाननी चाहिए। 76. कसायकुसोले जहा पुलाए, नवरं उक्कोसेणं अणुत्तरविमाणेसु। [76] कषायकुशील की वक्तव्यता पुलाक के समान है, विशेष यह है कि वह उत्कृष्टतः अनुत्तरविमानों में उत्पन्न होता है / 77. णियंठे णं भंते ! 0 ? एवं चेव जाव वेमाणिएसु उववज्जमाणे अजहन्नमणुक्कोसेणं अणुत्तरविमाणेसु उक्वज्जेज्जा। [77 प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ मर कर किस गति में जाता है ? 1. (क) वही, पत्र 897 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा.७, 5, 3375 --. ---. . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org