________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 6] [409 [77 उ.] गौतम ! इसका कथन भी पूर्ववत् यावत् वैमानिकों में उत्पन्न होता हया अजघन्य-अनुत्कृष्ट अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होता है, यहाँ तक कहना चाहिए / 78. सिणाए णं भंते ! कालगते समाणे के गति गच्छति ? गोयमा ! सिद्धिगति गच्छई। 78 प्र.] भगवन् ! स्नातक मृत्यु प्राप्त कर किस गति में जाता है ? [78 उ.] गौतम ! वह सिद्धिति में जाता है। 76. पुलाए णं भंते ! देवेसु उववज्जमाणे किं इंदत्ताए उववज्जेज्जा, सामाणियत्ताए उववज्जेज्जा, तायत्तीसगत्ताए उववज्जेज्जा, लोगपालत्ताए उववज्जेज्जा, अहमिंदत्ताए उववज्जेज्जा? गोयमा ! अविराहणं पडुच्च इंदत्ताए उववज्जेज्जा, सामाणियत्ताए उववज्जेज्जा, तायत्तीसगत्ताए उववज्जेज्जा, लोगयालगताए उववज्जेज्जा, नो अहमिंदत्ताए उववज्जेज्जा। विराहणं पडुच्च अन्नयरेसु उववज्जेज्जा। [76 प्र.] भगवन् ! देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक क्या इन्द्ररूप में उत्पन्न होता है या सामानिकदेवरूप में, त्रास्त्रिशरूप में लोकपालरूप में, अथवा अहमिन्द्ररूप में उत्पन्न होता है ? [76 उ.] गौतम ! अविराधना की अपेक्षा वह इन्द्ररूप में, सामानिकरूप में, बायस्त्रिशरूप में अथवा लोकपाल के रूप में उत्पन्न होता है, किन्तु अहमिन्द्र रूप में उत्पन्न नहीं होता / विराधना की अपेक्षा अन्यतर देव में (अर्थात् भवनपति आदि किसी भी देव में) उत्पन्न होता है / 80. एवं बउसे वि। [80] इसी प्रकार बकुश के विषय में समझना चाहिए। 81. एवं पडिसेवणाकुसीले वि। के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार जानना। 82. कसायकुसोले० पुच्छा। गोयमा ! अविराहणं पडुच्च इंदत्ताए वा उववज्जेज्जा जाव अहमिदत्ताए वा उववज्जेज्जा। विराहणं पडुच्च अन्नयरेसु उववज्जेज्जा। [82 प्र.] भगवन् ! कषायकुशील क्या इन्द्ररूप में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न / [82 उ.] गौतम ! अविराधना की अपेक्षा वह इन्द्ररूप में उत्पन्न होता है यावत् अहमिन्द्ररूप में उत्पन्न होता है / विराधना की अपेक्षा अन्यतरदेव (किसी भी देव) में उत्पन्न होता है। 83. नियंठे० पुच्छा। गोयमा ! अविराहणं पडुच्च नो इंदत्ताए उववज्जेज्जा जाव नो लोगपालत्ताए उववज्जेज्जा, अहमिवत्ताए उनबज्जेज्जा / विराहणं पडुच्च अन्नयरेसु उबवज्जेज्जा। [83 प्र.] भगवन् ! निम्रन्थ क्या इन्द्ररूप में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org