________________ 220 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [4] तत्थ णं प्राणंदरविखए णाम थेरे ते समणोवासए एवं वदासी कम्मियाए प्रज्जो ! देवा देवलोएसु उववज्जति / [17-4 उ.] फिर उनमें से प्रानन्दरक्षित नामक स्थविर ने उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहा-'पार्यो ! कमिता (कर्मो की विद्यमानता या कर्म शेष रहने) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। [5] तत्थ णं कासवे गाम थेरे ते समणोवासए एवं बदासी--संगियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववति, पुन्वतवेणं पुवसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववति / सच्चे णं एस प्रठे, नो चेव णं प्रातभाववत्तव्वयाए / [17-5 उ.] उनमें से काश्यप नामक स्थविर ने उन श्रमणोपासकों से यों कहा-'पार्यो ! संगिता (द्रव्यादि के प्रति रागभाव- आसक्ति) के कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार हे आर्यो ! (वास्तव में) पूर्व (रागभावयुक्त) तप से, पूर्व (सराग) संयम से, कमिता (कर्मक्षय न होने से या कमों के रहने) से, तथा संगिता (द्रव्यासक्ति) से, देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं / यह बात (अर्थ) सत्य है। इसलिए कही है, हमने अपना प्रात्मभाव (अपना अहंभाव या अपना अभिप्राय) बताने की दृष्टि से नहीं कही है।' 18. तए गं ते समणोवासया थेरेहिं भगवतेहि इमाइं एयारूवाई वागरणाई वागरिया समाणा हद्वतुट्ठा थेरे भगवते वदति नमसंति, 2 पसिणाई पुच्छंति, 2 अट्ठाई उवादियंति, 2 उठाए उठेति, 2 थेरे भगवंते तिक्खुत्तो वंदति णमंसंति, 2 थेराणं भगवंताणं अंतियाओ पुष्फवतियानो चेइयाओ पडिनिक्खमंति, 2 जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। [18] तत्पश्चात् वे श्रमणोपासक, स्थविर भगवन्तों द्वारा (अपने प्रश्नों के) कहे हुए इन और ऐसे उत्तरों को सुनकर बड़े हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए और स्थविर भगवन्तों को वन्दना नमस्कार करके अन्य प्रश्न भी पूछते हैं, प्रश्न पूछ कर फिर स्थविर भगवन्तों द्वारा दिये गये उत्तरों (अर्थों) को ग्रहण करते हैं। तत्पश्चात् वे वहाँ से उठते हैं और तीन बार वन्दना-नमस्कार करते हैं। फिर वे उन स्थविर भगवन्तों के पास से और उस पुष्पवतिक चैत्य से निकलकर जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस (अपने-अपने स्थान पर) लौट गए। 16. तए णं ते थेरा अन्नया कयाइ तुगियानो पुप्फवतिचेइयानो पडिनिम्गच्छति, 2 बहिया जणवयविहारं विहरति / [16] इधर वे स्थविर भगवन्त भी किसी एक दिन तुगिका नगरी के उस पुष्पवतिक चैत्य से निकले और बाहर (अन्य) जनपदों में विचरण करने लगे। विवेचन-तुगिका के श्रमणोपासकों के प्रश्न और स्थविरों के उत्तर-प्रस्तुत पांच सूत्रों (15 से 19 तक) में तुगिका के श्रमणोपासकों द्वारा स्थविरों का धर्मोपदेश सुनकर उनसे सविनय पूछे गये प्रश्नों तथा उनके द्वारा विभिन्न अपेक्षाओं से दिये गये उत्तरों का निरूपण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org