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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-५ ] [ 219 [15] तत्पश्चात् उन स्थविर भगवन्तों ने उन श्रमणोपासकों तथा उस महती परिषद् (धर्मसभा) को केशीश्रमण की तरह चातुर्याम-धर्म (चार याम वाले धर्म) का उपदेश दिया। यावत् वे श्रमणोपासक अपनी श्रमणोपासकता द्वारा (उन स्थविर भगवन्तों की) आज्ञा के आराधक हुए / यावत् धर्म-कथा पूर्ण हुई / तुंगिका के श्रमणोपासकों के प्रश्न और स्थविरों के उत्तर 16. तए णं ते समणोवासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव हयहिदया तिवखुत्तो प्रायाहिणपयाहिणं करेंति, 2 जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति, 2 एवं वदासी-- संजमे णं भते ! किंफले ? तवे ज भते ! किंफले ? तए णं ते धेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वदासी-संजमे णं अज्जो ! अणण्हयफले, तवे बोदाणफले। [16] तदनन्तर वे श्रमणोपासक स्थविर भगवन्तों से धर्मोपदेश सुनकर एवं हृदयंगम करके बड़े हर्षित और सन्तुष्ट हुए, यावत् उनका हृदय खिल उठा और उन्होंने स्थविर भगवन्तों की दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा की, यावत् (पूर्वोक्तानुसार) तीन प्रकार की उपासना द्वारा उनकी पर्युपासना की और फिर इस प्रकार पूछा [प्र. भगवन् ! संयम का क्या फल है ? भगवन् ! तप का क्या फल है ? [उ.] इस पर उन स्थविर भगवन्तों ने उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहा-'हे पार्यो ! संयम का फल अनाश्रवता (पाथवरहितता-संवरसम्पन्नता) है / तप का फल व्यवदान (कर्मों को विशेषरूप से काटना या कर्मपंक से मलिन अात्मा को शुद्ध करना) है। 17. [1] तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वदासी-जइ णं भाते ! संजमे अणहयफले, तवे वोदाणफले किपत्तियं णं भंते ! देवा देवलोएसु उववज्जति ? [17-1 प्र.] (स्थविर भगवन्तों से उत्तर सुनकर) श्रमणोपासकों ने उन स्थविर भगवन्तों से (पुनः) इस प्रकार पूछा-'भगवन् ! यदि संयम का फल अनाश्रवता है और तप का फल व्यवदान है तो देव देवलोकों में किस कारण से उत्पन्न होते हैं ?' [2] तत्थ णं कालियपुत्ते नाम थेरे ते समणोवासए एवं वदासी—पुवतवेणं अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जति। [17-2 उ.] (श्रमणोपासकों का प्रश्न सुनकर) उन स्थविरों में से कालिकपुत्र नामक स्थविर ने उन श्रमणोपासकों से यों कहा-'पार्यो ! पूर्वतप के कारण देव देवलोंकों में उत्पन्न होते हैं।' [3] तत्थ गं मेहिले नाम थेरे ते समणोबासए एवं वदासी-पुव्वसंजमेणं अज्जो ! देवा देवलोएसु उववज्जंति। [17-3 उ.] उनमें से मेहिल (मधिल) नाम के स्थविर ने उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहा-'पार्यो ! पूर्व-संयम के कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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