________________ छट्ठो उद्देसओ : नियंठ छठा उद्देशक : निर्ग्रन्थों के छत्तीस द्वार छठे उद्देशक को छत्तीस द्वार-निरूपक गाथाएँ 1. पण्णवण 1 वेद 2 रागे 3 कप 4 चरित्त 5 पडिसेवणा 6 णाणे 7 // तित्थे 8 लिग 6 सरीरे 10 खत्ते 11 काल 12 गति 13 संजम 14 निकासे 15 // 1 // जोगुवोग 16-17 कसाए 18 लेस्सा 16 परिणाम 20 बंध 21 वेए य 22 / कम्मोदीरण 23 उपसंपजहण 24 सन्ना य 25 प्राहारे 26 // 2 // भव 27 प्रागरिसे 28 कालंतरे य 26-30 समुघाय 31 खत्त 32 फुसणा य 33 / भावे 34 परिमाणे 35 खलु अप्पाबहुयं 36 नियंठाणं // 3 // [1 गाथार्थ-] (छठं उद्देशक में) निर्ग्रन्थों के विषय में 36 द्वार हैं / यथा-(१) प्रज्ञापन, (2) वेद, (3) राग, (4) कल्प, (5) चारित्र, (6) प्रतिसेवना, (7) ज्ञान, (8) तीर्थ, (9) लिंग, (10) शरीर, (11) क्षेत्र, (12) काल, (13) गति, (14) संयम, (15) निकाशर्ष (सनिकर्ष-पुलाकादि का परस्पर संयोजन), (16) योग, (17) उपयोग, (18) कषाय, (16) लेश्या, (20) परिणाम, (21) बन्ध, (22) वेद, (वेदन), (23) कर्मों की उदोरणा, (24) उपसंपत्-हान, (25) संज्ञा, (26) माहार, (27) भव, (28) आकर्ष, (29) काल, (30) अन्तर, (31) समुद्घात, (32) क्षेत्र, (33) स्पर्शना, (34) भाव, (35) परिमाण और (36) अल्पबहुत्व / विवेचना-बाह्य और आभ्यन्तर ग्रन्थ-परिग्रह से रहित को निर्ग्रन्थ, श्रमण या साधु कहते हैं। निर्ग्रन्थों के प्रकार, उनमें वेद, राग, कल्प, चारित्र आदि कितने और किस प्रकार के पाए जाते हैं ? इत्यादि 36 पहलुओं से निर्ग्रन्थों के जीवन का वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया गया है।' प्रथम प्रज्ञापनाद्वार : निर्ग्रन्थों के भेद-प्रभेद 2. रायगिहे जाव एवं वयासी - |2) राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा --- 3. कति णं भंते ! नियंठा पन्नत्ता? गोयमा ! पंच नियंठा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाए बउसे कुसीले नियंठे सिणाए। [3 प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के कहे हैं ? 3 उ.] गौतम ! निम्रन्थ पांच प्रकार के बताए हैं। यथा-(१) पुलाक, (2) बकुश, (3) कुशील, (4) निम्रन्थ और (1) स्नातक / 1. भगवती-उपक्रम (संयोजक --पं. मुनि श्री जनकरायजी म.) पृ. 601 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org