________________ 388] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 4. पुलाए गं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते? गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा-नाणपुलाए दंसणपुलाए चरित्तपुलाए लिंगपुलाए अहासुहमपुलाए नाम पंचमे।। [4 प्र.] भगवन् ! पुलाक कितने प्रकार के कहे हैं ? [4 उ.] गौतम ! पुलाक पांच प्रकार के कहे हैं / यथा-(१) ज्ञानपुलाक, (2) दर्शनपुलाक, (3) चारित्रपुलाक, (4) लिंगपुलाक (5) यथासूक्ष्मपुलाक / बउसे णं भंते ! कतिविधे पन्नते ? गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा-आभोगबउसे, अणाभोगबउसे संवडबउसे असंवुडबउसे अहासुहुमबउसे नामं पंचमे / [5 प्र.] भगवन् ! बकुश कितने प्रकार के कहे हैं ? [5 उ.] गौतम ! बे पांच प्रकार के कहे हैं। यथा-(१) प्राभोगबकुश, (2) अनाभोगबकुश, (3) संवृतबकुश, (4) असंवृतबकुश और (5) यथासूक्ष्मबकुश / 6. कुसीले णं भंते ! कतिविधे प्रश्नत्ते? गोयमा ! दुविधे पन्नत्ते, तं जहा-पडिसेवणाकुसीले य, कसायकुसीले य / [6 प्र.] भगवन् ! कुशील कितने प्रकार के कहे हैं ? [6 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के होते हैं / यथा-प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशीला / 7. पडिसेवणाकुसोले णं भंते ! कतिविध पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा-नाणपडिसेवणाकुसीले दंसणपडिसेवणाकुसोले चरित्तपडिसेवणाकुसोले लिंगपडिसेवणाकुसोले अहासुहमपडिसेवणाकुसीले णामं पंचमे / [7 प्र] भगवन् ! प्रतिसेवनाकुशील कितने प्रकार के कहे गये हैं ? [7 उ.] गौतम ! प्रतिसेवनाकुशील पांच प्रकार के कहे गये हैं / यथा--(१) ज्ञानप्रतिसेवनाकुशील, (2) दर्शनप्रतिसेवनाकुशील, (3) चारित्रप्रतिसेवनाकुशील, (4) लिंगप्रतिसेवना. कुशील और पांचवें (5) यथासूक्ष्मप्रतिसेवनाकुशील / / 8. कसायकुसीले गं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा नाणकसायकुसोले दसणकसायकुसीले चरित्तकसायकुसोले लिंगकसायकुसोले, अहासुहमकसायकुसीले णामं पंचमे। [8 प्र.] भगवन् ! कषायकुशील कितने प्रकार के कहे हैं ? [8 उ.] गौतम ! कषायकुशील भी पांच प्रकार के कहे हैं। यथा--(१) ज्ञानकषायकुशील, (2) दर्शनकषायकुशील, (3) चारित्रकषायकुशील, (4) लिंगकषायकुशील और पांचवें (5) यथा सूक्ष्मकषायकुशील / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org