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________________ 216] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तुंगिकानिवासी श्रमणोपासक पापित्यीय स्थविरों की सेवा में 13. तए णं तु गियाए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-महापहपहेसु जाव' एगदिसाभिमहा णिज्जायंति। [13] तदनन्तर तुंगिकानगरी के शृगाटक (सिंघाडे के आकार वाले त्रिकोण) मार्ग में, त्रिक (तीन मार्ग मिलते हैं, ऐसे) रास्तों में, चतुष्क पथों (चार मार्ग मिलते हैं, ऐसे चौराहों) में तथा अनेक मार्ग मिलते हैं, ऐसे मार्गों में, राजमार्गों में एवं सामान्य मार्गों में (सर्वत्र उन स्थविर भगवन्तों के पदार्पण की) बात फैल गई / जनता एक ही दिशा में उन्हें वन्दन करने के लिए जाने लगी है। 14. तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए लट्ठा समाणा हद्वतुद्वा जावर सद्दाति, 2 एवं वदासी-एवं खलु देवाणुपिया ! पासावच्चेज्जा थेरा भगवतो जातिसंपन्ना जावमहापडिरूवं उग्गहं उम्गिमिहत्ताणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति / तं महाफलं खलु देवाणुपिया ! तहारूदाणं थेराणं भगवंताणं गाम-गोतस्स वि सवणयाए किमंग पुण अभिगमण-बंदण-नमंसणपडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? जाव गणयाए ?, तं गच्छामो णं देवाणुपिया! थेरे भगवते व दामो नमसामो जाव' पज्जुवासामो, एवं णं इहभवे वा परभवे वा जावई अणुगामियत्ताए भविस्सतीति कटु अन्नमन्नस्स अंतिए एयम पडिसुर्णेति, 2 जेणव सयाई सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छंति, 2 हाया कयबलिकम्मा कतकोउयमंगलपायच्छित्ता, सुद्धप्पा साई मंगल्लाई वत्थाई पवराई परिहिया, अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा सहि 2 गेहेहितो पडिनिक्खमंति, 2 ता एगतो मेलायति, 2 पायविहारचारेणं तुगियाए नगरीए मझमझेणं णिग्गच्छंति, 2 जेणेव पुप्फवतीए चेतिए तेणेव उवागच्छंति, 2 थेरे भगवते पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छंति, तं जहा–सचित्ताणं दवाणं विनोसरणताए 1 प्रचित्ताणं दवाणं अविनोसरणताए 2 एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं 3 चक्खुप्फासे अंजलिप्यागहेणं 4 मणसो एगतीकरणेणं 5; जेणेव थेरा भगवतो तेणेव उवागच्छंति, 2 1 'जाव' शब्द यहाँ निम्नोक्त पाठ का सूचक है—'बहुजणसई इ वा जणबोले इ वा जणकलकले इ वा जणुम्मी इ वा जणसन्निवाए इ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एबमाइक्खइ 4 एवं खलु देवाणुप्पिया! पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना....... इत्यादि पाठ स. 12 के प्रारम्भ में उक्त पाठ 'विहरंति' तक समझना चाहिए। 2. 'जाब' पद यहाँ निम्नोक्त पाठ-सूचक है--'चित्तमाणंदिा गंदिआ परमाणंदिआ पोइमणा परमसोमसिमा हरिसबसविसप्पमाणहिअया धाराहयमीवसुरहिकुसुमचंचमालइयतणू ऊससियरोमकूवा / ' 3. यहाँ 'जाव' पद 'जातिसंपन्ना' (सू. 12) से लेकर 'अहापडिरूव' तक का वोधक है / 4. 'जाव' पद से यहाँ निम्नोक्त पाठ समझे—'एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुक्यणस्स सवणताए किमंग पुण विउलस्स अत्थस्स गहणयाए।' 5. 'जाव' पद निम्नोक्त पाठ का सूचक है----'सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो।' 6. 'जाव' पद यहाँ निम्नोक्त पाठ का सूचक है—'हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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