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________________ 348 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसून 118. एएसि गं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं, संखेज्जपदेसियाणं असंखज्जपएसियाणं अणंतपएसियाण य खंधाणं दवट्टयाए पएसट्टयाए दवट्ठपएसट्ठयाएं कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा चवद्वयाए, परमाणुपोग्गला दन्वट्ठयाए अणंतगुणा, संखेज्जपएसिया खंधा दवट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेन्जपएसिया खंधा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा / पएसट्टयाए–सम्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा पएसटुताए, परमाणुपोग्गला अपदेसट्टयाए अणंतगुणा, संखेज्जपएसिया खंधा पएसट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपएसिया खंधा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा / दव्वद्रुपएसट्टयाए-सच्चत्थोवा अणंतपएसिया खंधा दव्वट्ठयाए, ते चेव पएसट्टयाए अणंतगुणा, परमाणुपोग्गला दब्वट्ठनपएसट्टयाए अणंतगुणा, संखेज्जपएसिया खंधा दवट्ठयाए संखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपएसिया खंधा दम्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा। [118 प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल, संख्यात-प्रदेशी, असंख्यात-प्रदेशी और अनन्त-प्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थरूप से, प्रदेशार्थरूप से तथा द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ-रूप से कौन-से पुद्गल-स्कन्ध किन पुद्गल-स्कन्धों से यावत् विशेषाधिक हैं ? [118 उ.] गौतम ! द्रव्यार्थरूप से सबसे अल्प अनन्तप्रदेशी स्कन्ध हैं, उनसे द्रव्यार्थ से परमाणु-पुद्गल अनन्तगुणे हैं। उनसे संख्यातप्रदेशी स्कन्ध संख्यातगुणे हैं, उनसे द्रव्यार्थरूप से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध असंख्यातगणे हैं। प्रदेशार्थरूप से---सबसे थोडे अनन्तप्रदेशी स्कन्ध हैं। उनसे अप्रदेशार्थरूप से परमाणु-पुद्गल अनन्तगुणे हैं / उनसे संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशी-स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से असंख्यात-गुणे हैं / द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से--सबसे अल्प अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से हैं। इनसे अनन्तप्रदेशी स्कंध प्रदेशार्थ से अनन्तगुण हैं / उनसे परमाणुपुद्गल द्रव्यार्थ-अप्रदेशार्थ से अनन्तगुण हैं। उनसे संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं / उनसे संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से असंख्यातगुणे हैं / उनसे असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ से असंख्यातगुणे हैं। विवेचन–परमाणु को प्रप्रदेशार्थता का प्राशय-प्रदेशार्थता के प्रकरण में परमाणु के लिए जो 'अप्रदेशार्थता' कही है, उसका आशय यह है कि परमाणु के प्रदेश नहीं होते। इसलिए अप्रदेशार्थरूप से परमाणु को अनन्तगुण कहा है। द्रव्य को विवक्षा में परमाणु द्रव्य है और प्रदेश की विवक्षा में उसके प्रदेश नहीं होने से अप्रदेश है। इस प्रकार परमाणु की द्रव्यार्थ-अप्रदेशार्थता कही है।' एक-संख्येय-असंख्येय-प्रदेशी पुद्गलों को अवगाहना एवं स्थिति को लेकर अल्पबहुत्वचर्चा 119. एएसि णं भंते ! एगपएसोगाढाणं संखेज्जपएसोगाढाणं असंखेज्जपएसोगाढाण य पोग्गलाणं दवट्टयाए पदेसट्टयाए दव्वट्ठपदेसट्टयाए कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा! सम्वत्थोवा एगपदेसोगाढा पोग्गला दब्वट्ठयाए, संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दब्वट्टयाए असंखेज्जगुणा / पएसट्टयाए--- 1. भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 880 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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