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________________ पच्चीसवां शतक : उदृ शक 4 / सव्वत्थोवा एगपदेसोगाढा पोग्गला अपएसट्टयाए, संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा / दध्वटुपएसट्टयाए --सव्वत्थोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दब्वट्ठअपदेसद्वयाए, संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दब्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दवट्टयाए असंखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा। __ [116 प्र.] भगवन् ! एकप्रदेशावगाढ, संख्यातप्रदेशावगाढ, और असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गलों में, द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से कौन-से पुद्गल किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? [119 उ.] गौतम ! द्रव्यार्थ से एकप्रदेशावगाढ पुद्गल सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्यार्थ से असंख्यातगुण हैं। प्रदेशार्थ से एक-प्रदेशावगाढ पुद्गल अप्रदेशार्थ से सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल प्रदेशार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल प्रदेशार्थ से असंख्यातगुण हैं। द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से-एकप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्यार्थ-अप्रदेशार्थ से सबसे अल्प हैं। उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल प्रदेशार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्याथ से असंख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल प्रदेशार्थ से असंख्यातगुण हैं / __ 120. एएसि पं भंते ! एगसमयद्वितीयाण संखेज्जसमद्वितीयाणं असंखेज्जसमयद्वितीयाण य पोग्गलाणं? जहा प्रोगाहणाए तहा ठितीए वि भाणियव्वं अप्पाबहुगं / 120 प्र. भगवन् ! एकसमय की स्थिति वाले, संख्यातसमय की स्थिति वाले और असंख्यातसमय की स्थिति वाले पुद्गलों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? [120 उ.] गौतम ! अवगाहना के अल्पबहुत्व के समान स्थिति का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। विवेचन क्षेत्रावगाढ पुद्गलों का अल्पबहुत्व----क्षेत्राधिकार में क्षेत्र की प्रधानता है / अतएव परमाणु पुद्गल तथा द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी किसी विवक्षित एक क्षेत्र में अवगाढ कहे जाते हैं। यहाँ आधार और प्राधेय में अभेद की विवक्षा करने से वे एकप्रदेशावगाढ कहे जाते हैं / इसलिए एकप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्यार्थ से सबसे थोड़े हैं, क्योंकि वे लोकाकाश के प्रदेशप्रमाण ही हैं। कोई भी ऐसा आकाशप्रदेश नहीं है, जो एक प्रदेशावगाही परमाण अवकाश-प्रदानरूप परिणाम से परिणत न हो। इसी प्रकार आगे संख्यात-प्रदेशावगाढ आदि पुद्गलों के विषय में भी विचार कर लेना चाहिए।' दि को 1. भगवती. अ. वृत्ति, पन्न 80 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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