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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 4] एकादिगुण कर्कश स्पर्श वाले पुद्गलों को द्रव्यार्थ प्रदेशार्थ से विशेषाधिकतादि प्ररूपरणा 113. एएसि णं भंते ! एगगुणकक्खडाणं दुगुणकक्खडाण य पोग्गलाणं दवट्ठयाए कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया ? | गोयमा ! एगगुणकक्खडेहितो पोग्गलेहितो दुगुणकक्खडा पोग्गला दबट्टयाए विसेसाहिया / [113 प्र.] भगवन् ! एकगुण कर्कश और द्विगुण कर्कश पुद्गलों में द्रव्यार्थरूप से कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? [113 उ.] गौतम ! एकगुण कर्कश पुद्गलों से द्विगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थरूप से विशेषाधिक हैं। 114. एवं जाब नवगुणकक्खडेहितो पोग्गलेहितो दसगुणकक्खडा पोग्गला दन्वयाए विसेसाहिया। दसगुणकक्ख.हितो पोग्गलेहितो संखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दवट्टयाए बहुया। संखेज्जगुणकवखहितो पोग्गलहितो असंखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए बहुया। असंखेज्जगुणकक्खडेहितो पोग्गलेहितो अणंतगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए बहुया / [114 | इसी प्रकार यावत् नवगुण-कर्कश पुद्गलों से दशगुण-कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थरूप से विशेषाधिक हैं / दशगुण-कर्कश पुद्गलों से संख्यात गुण-कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ रूप से बहुत हैं / संख्यातगुण-कर्कश पुद्गलों से असंख्यातगुण-कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थरूप से बहुत हैं। असंख्यातगुण-कर्कश पुद्गलों से अनन्तगुण-कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थरूप से बहुत हैं। 115. एवं पएसटुताए वि / सम्वत्थ पुच्छा भाणियब्वा / [115] प्रदेशार्थरूप से समग्र वक्तव्यता भी इसी प्रकार जाननी चाहिए। सर्वत्र प्रश्न करना चाहिए। 116. जहा कक्खडा एवं मउय-गरुय-लहुया वि। [116] कर्कश स्पर्श सम्बन्धी वक्तव्यता के अनुसार मृदु (कोमल), गुरु (भारी) और लघु (हलके) स्पर्श के विषय में समझना चाहिए / 117. सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खा जहा वण्णा / र रूक्ष स्पर्श के विषय में वर्णों की वक्तव्यता के अनुसार जानना चाहिए। विवेचन स्पर्श-विशिष्ट पुद्गलों में अल्पबहुत्व-वर्णादिभावविशिष्ट पुद्गलों के अल्पबहुत्व की विचारणा के सन्दर्भ में कर्कशादि चार स्पों से युक्त पुद्गलों में पूर्व-पूर्व से उत्तर-उत्तर वाले पुद्गल द्रव्यार्थरूप से तथाविध स्वभाव के कारण बहुत कहने चाहिए। शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पों से युक्त पुद्गलों में काले प्रादि वर्णविशेषों के समान दश गुणों तक उत्तर-उत्तर वालों से पूर्व-पूर्व बाले बहुत कहने चाहिए।' शेष मूल पाठ से स्पष्ट है। 1. भगवती. भ. वृत्ति, पत्र 879 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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