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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 3] [321 है, इसलिये इसे एकतःखा कहते हैं / इस श्रेणी में दो, तीन अथवा चार समय की वक्रगति होने पर भी क्षेत्र की दृष्टि से इसे पृथक् कहा गया है / रेखाचित्र इस प्रकार है 5. उभयतः खा-जिस श्रेणी से जीव, त्रसनाडी के बाहर से बाँये पक्ष में प्रविष्ट हो कर असनाडी से जाते हए दाहिने पक्ष में उत्पन्न होते हैं, उस श्रेणी को उभयतःखा कहते हैं, क्योंकि इस श्रेणी को सनाडी के बाहर बाई और दाहिती अोर के आकाश का स्पर्श होता है। रेखाचित्र इस प्रकार है 6. चक्रवाल-जिस श्रेणी से परमाणु अादि गोल चक्कर लगा कर उत्पन्न होते हैं, उसे चक्रवाल-श्रेणी कहते हैं / रेखाचित्र इस प्रकार है-0. 7. श्रद्धचक्रवाल-जिस श्रेणी से परमाणु आदि आधा चक्कर लगा कर उत्पन्न होते हैं, उसे अर्द्ध-चक्रवाल श्रेणी कहते हैं।' रेखाचित्र यों हैपरमाणु-पुद्गल तथा द्विप्रदेशिकादि स्कन्धों की चौबीस दण्डकों में अनुश्रेरिण-गतिप्ररूपरणा 106, परमाणुपोग्गलाणं भंते ! कि अणुसेढि गती पवत्तति, विसेदि गती पवत्तति ? गोयमा! अणुसेढि गती पवत्तति, नो विसेदि गती पवत्तति / [106 प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गलों की गति अनुश्रेणि (-आकाश-प्रदेशों की श्रेणी के अनुसार) होती है या विश्रेणि (--आकाश-प्रदेशों की श्रेणी के विपरीत) होती है ? [109 उ.] गौतम ! परमाणु-पुद्गलों की गति अनुश्रेणी (-श्रेणी के अनुसार) होती है, विश्रेणि गति (-श्रेणी के बिना) नहीं होती। 110. दुपएसियाणं भंते ! खंधाणं कि अणुसेढि गती पवत्तति, विसेदि गती पवत्तति ? एवं चेव। [110 प्र.] भंते ! द्विप्रदेशिक स्कन्धों की गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि (श्रेणी के बिना) होती है ? [110 उ.] पूर्वोक्त कथनानुसार जानना / 111. एवं जाव अणंतयएसियाणं खंधाणं। [111] इसी प्रकार यावत् अनन्त-प्रदेशिक स्कन्ध-पर्यन्त जानना ! 112. नेरइयाणं भंते ! कि अणुसेढि गती पवत्तति, विसे ढिं गती पवत्तति ? एवं चेव / [112 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों को गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि ? [112 उ.] गौतम ! पूर्ववत् समझना। 1. (क) भगवती अ. बृत्ति, पत्र 868 (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. 7, पृ. 3249-3250 Jain Education Internationale For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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