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________________ 212] [ व्याख्याप्रप्तिसूत्र [उ.] गौतम ! जैसे कोई पुरुष तपी हई सोने की (या लोहे की) सलाई (डालकर, उस) से बांस की रूई से भरी हुई नली या बूर नामक वनस्पति से भरी नली को जला (विध्वस्त कर) डालता है, हे गौतम ! ऐसा ही असंयम मैथुन सेवन करते हुए जीव के होता है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', ऐसा कहकर-~~-यावत् गौतम स्वामी विचरण करते हैं। विवेचन–मैथुन प्रत्यायिक सन्तानोत्पत्ति संख्या एवं मथुनसेवन से असंयम का निरूपण--- प्रस्तुत तीन सूत्रों में से प्रथम दो सूत्रों में यह बताया गया है कि एक जीव के एक जन्म में कितने पुत्र (सन्तान) हो सकते हैं और उसका क्या कारण है ? तीसरे सूत्र में मैथुन-सेवन से कितना और किस प्रकार का असंयम होता है ? यह सोदाहरण बताया गया है। एक जीव शतपृथक्त्व जीवों का पुत्र कैसे ?-गाय आदि की योनि में गया हया शतपृथक्त्व (दो सौ से लेकर नौ सौ तक) सांडों का वीर्य, वीर्य ही गिना जाता है, क्योंकि वह वीर्य बारह मुहत तक वीर्य रूप पर्याय में रहता है। उस वीर्य पिण्ड में उत्पन्न हुअा एक जीव उन सबका (जिनका कि वीर्य गाय की योनि में गया है) पुत्र (सन्तान) कहलाता है। इस प्रकार एक जीव, एक ही भव में शतपथक्त्व (दो सौ से लेकर नौ सौ) जीवों का पुत्र हो सकता है। अर्थात्-एक जीव के, एक ही भव में उत्कृष्ट नौ सौ पिता हो सकते हैं। एक जीव के, एक ही मव में शत-सहस्रपथक्त्व पुत्र कैसे ?--मत्स्य ग्रादि जब मैथुन सेवन करते हैं तो एक बार के संयोग से उनके शत-सहस्रपृथक्त्व (दो लाख से लेकर नौ लाख तक) जीव पुत्र रूप से उत्पन्न होते हैं और जन्म लेते हैं। यह प्रमाण है---एक भव में एक जीव के उत्कृष्ट शतसहस्रपृथक्त्व पुत्र होने का / यद्यपि मनुष्यस्त्री की योनि में भी बहुत-से जीव उत्पन्न होते हैं किन्तु जितने उत्पन्न होते हैं, वे सब के सब निष्पन्न नहीं होते (जन्म नहीं लेते। मैथन सेवन से असंयम-मैथुनसेवन करते हुए पुरुष के मेहन (लिंग) द्वारा स्त्री की योनि में रहे हुए पंचेन्द्रिय जीवों का विनाश होता है, जिसे समझाने के लिए मूलपाठ में उदाहरण दिया गया है। तुंगिका नगरी के श्रमणोपासकों का जीवन 10. तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाम्रो नगरानो गुणसिलामो चेइयाप्रो पडिनिक्खमइ, 2 बहिया जगदयविहारं विहरति / [10] इसके पश्चात् (एकदा) श्रमण भगवान् महावीर राजगृह नगर के गुणशील उद्यान से निकालकर बाहर जनपदों में विहार करने लगे। 11. तेणं कालेणं 2 तुगिया नाम नगरी होत्था / वणो। तीसे गं तुंगियाए नगरीए 1. भगवतीसूत्र अ. बृत्ति, पत्रांक 134 2. बनारस (वाराणसी या काशी) से 80 कोस दूर पाटलीपुत्र (पटना) नगर है, वहाँ से 10 कोस दूर 'तुगिया' नाम की नगरी है। --श्रीसम्मेतशिखर रास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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