________________ 294] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मतानुसार—सनाड़ी के बाहर भी वायुकाय के वैक्रियशरीर होता है, किन्तु अप्रधानता के कारण उसकी यहाँ विवक्षा नहीं की गई है। कुछ प्राचार्यों का मत है कि तथाविध लोकान्त के निष्कुटों (कोणों) में वैक्रियशरीरी वायु नहीं होती।' तेजसशरीर जीव के द्वारा अवगाढ क्षेत्र के भीतर रहे हए द्रव्यों को ग्रहण करता है, उससे बाहर रहे हुए द्रव्यों को नहीं, क्योंकि उन्हें खींचने का स्वभाव उसमें नहीं है / अथवा वह स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित द्रव्यों को नहीं, क्योंकि उसका स्वभाव इसी प्रकार का होता है।' चौदह दण्डक : चौदह पद—यहाँ पांच शरीर, पांच इन्द्रियाँ, तीन योग और श्वासोच्छ्वास; ये 14 पद हैं / इन चौदह पद-सम्बन्धी 14 दण्डक हैं, जिनका कथन यथायोग्य रूप से किया ग इसीलिए यहाँ कहा गया है-'केयि चउबीसदडारणं / ' 3 // पच्चीसवां शतक : द्वितीय उद्देशक सम्पूर्ण / / 1. भगवनी. अ. वत्ति, पत्र 857 2. वही, पत्र 858 3. यही पत्र 858 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org