________________ ततीओ उद्देसओ : 'संठाण' ___ तृतीय उद्देशक : 'संस्थान' संस्थान के 6 भेदों का निरूपण 1. कति णं भंते ! संठाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! छ संठाणा पन्नत्ता, तं जहा--परिमंडले वट्टे से चउरले प्रायते अणित्थंथे। / 1 प्र.] भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गए हैं ? | 1 उ. | गौतम ! संस्थान छह प्रकार के कहे गए हैं। यथा--(१) परिमण्डल, (2) वृत्त, (3) त्र्यम्र, (4) चतुरस्र, (5) आयत और (6) अनित्थंस्थ। विवेचन--संस्थान : प्रकार और स्वरूप-संस्थान का अर्थ है आकार / जीव के जैसे छह संस्थान होते हैं, वैसे अजीवद्रव्य के भी छह संस्थान होते हैं। प्रस्तुत में अजीवसम्बन्धी छह संस्थानों का निरूपण है / परिमण्डल--चूड़ी सरीखा गोलाकार / कृत्त-कुम्हार के चाक जैसा गोल आकार / यस्त्र-सिंघाड़े सरीखा त्रिकोण आकार / चतुरस्त्र--बाजोट-सा चतुष्कोण प्राकार / आयत--लकड़ी जैसा लम्बा आकार / अनित्थंस्थ--अनियत प्राकार यानी परिमण्डल आदि से भिन्न विचित्र प्रकार की आकृति / ' छह संस्थानों की द्रव्यार्थ तथा प्रदेशार्थ रूप से अनन्तता-प्ररूपरणा 2. परिमंडला णं भंते ! संठाणा दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता ? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता / [2 प्र. भगवन् ! परिमण्डल संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [2 उ.| गौतम! वे संख्यात नहीं हैं, असंख्यात भी नहीं हैं, किन्तु अनन्त हैं / 3. बट्टा णं भंते ! संठाणा ? एवं चेव / [3 प्र.] भगवन् ! वृत्त संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यात है, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [3 उ. गौतम ! ये भी पूर्ववत् (अनन्त) हैं / 4. एवं जाव अणित्थंथा। [4] इसी प्रकार यावत् अनित्थंस्थ संस्थान-पर्यन्त जानना चाहिए / 5. एवं पदेसटुताए वि, एवं दवट्ठ-पदेसट्टताए वि। 1. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3216 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org