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________________ पंचमो उद्दसो : नियंठ पंचम उद्देशक : निग्नन्थ निर्ग्रन्थदेव-परिचारणासम्बन्धी परमतनिराकरण-स्वमतप्ररूपण 1. अण्णउत्यिया णं भंते ! एवमाइक्खंति मासंति पण्णवेति परूवेति एवं खलु नियंठे कालगते समाणे देवन्भूएणं प्रप्पाणणं से णं तत्थ णो अन्ने देवे, नो अग्नेसि देवाणं देवीनों अहिजुजिय 2 परियारेइ 1, को प्रप्पणच्चियानो देवीयो अभिजुजिय 2 परियारेइ 2, अप्पणामेव अध्याणं विउम्विय 2 परियारेइ 3; एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो वेदे वेदेइ, तं जहा-इस्थिवेदं च पुरिसवेदं च / एवं परउत्थियवत्तव्वया नेयन्वा जाव' इस्थिवेदं च पुरिसवेदं च / से कहमेयं भते ! एवं? गोयमा ! जंगं ते अन्नउस्मिया एवमाइक्खंति जाव इत्यिवेदं च पुरिसवेदं च / जे ते एवमासु मिच्छं ते एवमासु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि भा० प० परू.-एवं खलु नि कालगए समाणे अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उबवत्तारो भवंति महिडिएसु जाव' महाणुभागेसु दूरगतीसु चिरद्वितीएसु / से गं तस्य देवे भवति महिड्डोए जाव: दस दिसामो उज्जोवेमाणे पभासेमाणे जाव पडिरूवे / से णं तत्थ अन्ने देवे, अन्नेसि देवाणं देवीप्रो अभिजुजिय 2 परियारेइ 1, अप्पणच्चियानो देवीओ अभिजुजिय 2 परियारेइ 2, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउब्विय 2 परियारेइ 3; एगे विघणं जीवे एगणं समएणं एग वेदं वेदेइ, तं जहा-इस्थिवेदं वा पुरिसवेदं वा, जं समयं इथिवेदं वेदेइ णो तं समयं पुरिसवेयं वेएइ, जं समयं पुरिसवेयं वेएइ गो तं समयं इस्थिवेयं वेदेइ, इस्थिवेयस्स उदएणं नो पुरिसवेदं वेएइ, पुरिसवेयस्स उदएणं नो इस्थिवेयं वेएइ / एवं खलु एगे जोवे एगेणं समएणं एग वेद वेदेइ, तं जहा-इस्थिवेयं वा पुरिसवेयं वा। इत्थी इस्थिवेएणं उदिष्णेणं पुरिसं पत्थेइ, पुरिसो पुरिस एणं उदिण्णणं इत्यि पत्थेइ। दो वि ते अन्नमन्नं पत्थेति, तं जहा-इत्थी वा पुरिसं, पुरिसे वा इत्थि / 1. 'जाव' पद निम्नोक्त पाठ का सूचक है---"जं समयं इत्थिवेयं वेएइ, तं समयं पुरिसवेयं वेएइ, जलमयं परिसवेयं केएइ, तं समयं इत्थिदेयं वेएइ, इत्यिवेयस्स वेयणाए पुरिसवेयं वेएइ, पुरिसवेयस्स वेएमाए इत्थीवेयं.....।' 2. 'जाव' पद से महज्जुइएसु महाबलेसु महासोक्खेसु इत्यादि पाठ समझना चाहिए। 3. 'जाब' पद यहाँ निम्नोक्त पाठ का सूचक है--'महज्जुइए महाबले महायसे महासोक्खे महाणुभागे हारनिराइय. वच्छे (अथवा वस्थे) कड़यतु डियर्थभियभुए अंगयडलमट्रगडकग्णपीढ़धारी विचित्तहत्याभरणे विचित्तमालामउ. लिमउडे' इत्यादि यावत् रिद्धीए जईये पभाए छायाए अच्चीए तेएणं लेसाए.....। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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