________________ 220) [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आठ भवों का संवेधकाल 392 रात्रि-दिवस होता है। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यञ्च, संज्ञीतिर्यंच, असंज्ञी मनुष्य और संज्ञी मनुष्य के साथ तीसरे गमक का संवेधकाल जानना चाहिए / (3) तीसरे गमक का संवेध-काल बताया गया है, इसलिए तदनुसार छठे आदि गमकों का संवेधकाल सूचित हुआ समझना चाहिए। क्योंकि उनमें भी पाठ भव होते हैं। एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों के साथ प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ और पंचम-इन चार गमकों का संवेध भवादेश से संख्यात भव और कालादेश से संख्यातकाल जानना चाहिए।' / चौवीसवां शतक : अठारहवाँ उद्देशक सम्पूर्ण // 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 834 (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. 6, पृ. 3111,3112 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org