________________ अट्ठारसमो : तेइंदिय-उद्देसओ. अठारहवाँ उद्देशक : ब्रोन्द्रिय की उत्पादादि-प्ररूपणा त्रीन्द्रियों में उत्पन्न होनेवाले दण्डकों में सत्रहवें उद्देशकानुसार वक्तव्यता-निर्देश 1. तेइंदिया णं भंते ! कमोहितो उबवज्जति?. एवं तेइंदियाणं जहेव बंदियाणं उद्देसो, नवरं ठिति संवेहं च जाणेज्जा / तेउकाइएसु समं तलियगमे उक्कोसेणं अठ्ठत्तराई बे राइंदियसयाई। बेइंदिरहि समं ततियगमे उक्कोसेणं अडयालीसं संवच्छराई छण्णउयराइंदियसयमन्भहियाई। तेइंदिरहि समं ततियगमे उक्कोसेणं बाणउयाई तिन्नि राइंदियसयाई / एवं सम्वत्थ जाणेज्जा जाव सनिमणुस्स त्ति / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। // चउवीसइमे सए : अट्ठारसमो उद्देसओ समत्तो // 24-18 // [1 प्र.] भगवन् ! श्रीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? ; इत्यदि प्रश्न / [1 उ.] द्वीन्द्रिय-उद्देशक के समान त्रीन्द्रियों के विषय में भी कहना चाहिए / विशेष यह है कि स्थिति और संवेध (द्वीन्द्रिय से भिन्न) समझना चाहिए / तेजस्कायिकों के साथ (श्रीन्द्रियों का संवेध) तीसरे गमक में उत्कृष्ट 208 रात्रि-दिवस का और द्वीन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट दवस अधिक 48 वर्ष होता है। त्रीन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट 362 रात्रि दिवस होता है / इस प्रकार यावत्-संज्ञी मनुष्य तक सर्वत्र जानना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् यह इसी प्रकार है'; यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन--त्रीन्द्रियजीवों के स्थिति और संवेध-विशेषता का स्पष्टीकरण-(१) श्रीन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने वाले जीवों की स्थिति और त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति को मिला कर संवेध कहना चाहिए / यथा--त्रीन्द्रियों में उत्पन्न होने वाले तेजस्कायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तीन रात्रि-दिवस है, उसे चार भवों के साथ गुणा करने पर बारह रात्रि-दिवस होते हैं / तथा त्रीन्द्रिय की उत्कृष्ट स्थिति 49 रात्रि-दिवस की हैं / उसे चार भवों के साथ गुणा करने पर 196 रात्रि-दिवस होते हैं। इन दोनों राशियों को जोड़ने से 208 रात्रिदिवस होते हैं। यही तेजस्कायिक का त्रीन्द्रिय के तीसरे गमक का संवेध-काल है / (2) द्वीन्द्रिय का संवेध चार भवों की अपेक्षा 48 वर्ष होते हैं और त्रीन्द्रिय के चार भवों का संवेध 196 रात्रि-दिवस होता है। दोनों को मिलाने से 196 रात्रि-दिवस अधिक 48 वर्ष, द्वीन्द्रिय के साथ त्रीन्द्रिय का तीसरे गमक का संवेधकाल होता है। श्रीन्द्रिय का त्रीन्द्रिय के साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org