________________ 218 [व्याख्याज्ञप्तिसूत्र का बेइन्द्रिय के साथ जो संवेध कहा गया है, वही अकाय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय के साथ कहना चाहिए। अर्थात्-पहले, दूसरे, चौथे और पांचवें गमक में उत्कृष्ट संख्यात भव और शेष पांच गमकों में उत्कृष्ट पाठ भव जानने चाहिए। कालादेश से पृथ्वीकायिकादि की जो स्थिति हो, उसे द्वीन्द्रिय की स्थिति के साथ जोड़ कर संवेध जानना चाहिए। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों के साथ द्वीन्द्रिय के पूर्वोक्तवत् सभी गमकों में उत्कृष्ट पाठ-पाठ भव होते हैं।' // चौबीसवां शतक : सत्रहवां उद्देशक समाप्त // 1. (क) भगवती, श्र. वृत्ति, पत्र 834 (ख) भगवती, (हिन्दी विवेचन) भा. 6, पृ. 3110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org