________________ एगणवीसइमो : चरिंदिय-उद्देसओ उन्नीसवाँ उद्देशक : चतुरिन्द्रिय (जीवों की उत्पत्ति प्रादि सम्बधी) चतुरिन्द्रियों में उत्पन्न होनेवाले दण्डकों में उपपात-परिमाण आदि बोस द्वारों की प्ररूपणा 1. चरिदिया णं भंते ! कओहिलो उववज्जति ? 0 जहा तेइंदियाणं उद्देसओ तहा चरिदियाण वि, नवरं ठिति संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्तिक / // चउवीसइमे सए : एगणवीसइमो उद्देसनो समत्तो॥२४-१९ // [1 प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [1 उ.] जिस प्रकार त्रीन्द्रिय-उद्देशक कहा है, उसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में समझना चाहिए / विशेष—स्थिति और संवेध (त्रीन्द्रिय से भिन्न) जानना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-निष्कर्ष-स्थिति और संवेध के सिवाय चतुरिन्द्रिय-सम्बन्धी समग्र उद्देशक श्रीन्द्रियउद्देशक के समान जानना चाहिए। / / चौवीसवां शतक : उन्नीसवाँ उद्देशक समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org