________________ 212] [व्याण्याप्रज्ञप्तिसूत्र ___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर गोतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन-निष्कर्ष स्थिति और संवेध के सिवाय अप्कायिक का समग्र वर्णन पृथ्वीकायिकउद्देशक (पूर्वोक्त बारहवें उद्देशक) के समान समझना चाहिए। // चौवीसवां शतक : तेरहवाँ उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org