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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-१] [197 'गोयमा !' इसमणे भगव महावीरे भगव गोयम एवं क्यासी - एव खलु गोयमा ! मम अंतेवासी खंदए नामं अणगारे पगतिभद्दए जाव से गं मए प्रभणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महत्वयाई प्रारोक्त्तिा तं चेव सब अविसेसियं नेयव्य जाब (सु. 50-51) पालोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववष्णे। तत्थ ण एगइयाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाई ठिती प० / तत्थ णं खंदधस्स वि देवस्स बावीसं सागरोबमाइं ठिती पणत्ता। [53] इसके पश्चात् भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दनानमस्कार करके इस प्रकार पूछा-'भगवन् ! आपके शिष्य स्कन्दक अनगार काल के अवसर पर कालधर्म को प्राप्त करके कहाँ गए और कहाँ उत्पन्न हुए ?' उ०] गौतम आदि को सम्बोधित करके श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने फरमाया'हे गौतम ! मेरा शिष्य स्कन्दक अनगार, प्रकृतिभद्र यावत विनीत मेरी प्राज्ञा प्राप्त करके, स्वयमेव पंचमहावतों का ग्रारोपण करके, यावत् संल्लेखना-संथारा करके समाधि को प्राप्त होकर काल के अवसर पर काल करके अच्युतकल्प (देवलोक) में देवरूप में उत्पन्न हुया है। वहाँ कतिपय देवों की स्थिति बाईस सागरोपम की है / तदनुसार स्कन्दक देव की स्थिति भी वाईस सागरोपम की है। 54. से णं भंते ! खंदए देवे तानो देवलोगानो प्राउक्खएणं भवक्खएणं ठितीखएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहि उक्वजिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुझिहिति मुच्चिहि ति परिनिवाहिति सम्वदुक्खाणमंतं करेहिति / खंदप्रो सनत्तो।। / वितीय सए पढमो उद्दसो समत्तो।। [54] तत्पश्चात् श्री गौतमस्वामी ने पूछा-'भगवन् ! स्कन्दक देव वहाँ की आयु का क्षय, भव का क्षय और स्थिति का क्षय करके उस देवलोक से कहाँ जाएँगे और कहाँ उत्पन्न होंगे?' (उ०] गौतम ! स्कन्दक देव वहाँ की आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर महाविदेहवर्ष (क्षेत्र) में जन्म लेकर सिद्ध होंगे, वुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त करेंगे और सभी दुःखों का अन्त करेंगे। श्री स्कन्दक का जीवनवृत्त पूर्ण हुमा / विवेचन-स्कन्दक को गति और मुक्ति के विषय में भगवत्कथन--प्रस्तुत सूत्रद्वय (5354 सू.) में समाधिमरण प्राप्त स्कन्दकमुनि की भावी गति के सम्बन्ध में श्री गौतमस्वामी द्वारा पूछे गए प्रश्नों का भगवान् द्वारा प्रदत्त उत्तर अंकित है। भगवान् ने समाधिमरण प्राप्त स्कन्दक मुनि की गति (उत्पत्ति) अच्युतकल्प देवलोक में बताई है तथा वहाँ से महाविदेहक्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि मुक्ति गति बताई है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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