________________ 198] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूब कहिं गए ? कहि उववण्णे ? = कहाँ-किस गति में गए ? कहाँ-किस देवलोक में उत्पन्न हुए ? चयं चइत्ता=चय = शरीर को छोड़कर / 'प्राउक्खएणं, भवक्खएणं ठिइक्खएणं' की व्याख्या--प्राउक्खएणं = अायुष्यकर्म के दलिकों की निर्जरा होने से, भवखएणं = देव भव के कारणभूत गत्यादि (नाम) कर्मों की निर्जरा होने से, ठिइक्खएणं - आयुष्यकर्म भोग लेने से स्थिति का क्षय होने के कारण / ' // द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त / / 1. भगवतीमूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org