SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 194] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पादपोपगमन अनशन करूं / ऐसा विचार करके प्रातःकाल सूर्योदय होने पर तुम मेरे पास आए हो। हे स्कन्दक ! क्या यह सत्य है ?" (स्कन्दक अनगार ने कहा-) हाँ, भगवन् ! यह सत्य है / (भगवान्--) हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो; इस धर्मकार्य में विलम्ब मत करो। 50. तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अम्भणुष्णाए समाणे हद्वतुढ० जाव हयहियए उट्ठाए उठेइ, 2 समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पाहिणं करेइ जाव' नमंसित्ता सयमेव पंच महच्चयाई प्रारहेइ, 2 त्ता समणे य समणोनो य खामेइ, 2 ता तहारूवेहि थेरेहि कडाऽऽईहि सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं 2 दुल्हेइ, 2 मेघघणसनिगासं देवसनिवार्य पुढविसिलावट्टयं पडिलेहेइ, 2 उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, 2 दम्भसंथारयं संथरेइ, 2 दम्मसंथारयं दुरूहेइ, 2 दन्भसंथारोवगते पुरस्थाभिमुहे संपलियकनिसपणे करयलपरिग्गाहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वदासि-नमोऽत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोऽत्थु णं समणस्स भगवनो महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स, बंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगते, पासउ में भयव तत्थगए इहायं ति कट्ट बंदइ नमसति, 2 एवं वदासी-"पुवि पि मए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए सब्वे पाणातिवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जा मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणि पि य णं समणस भगवनो महावीरस्स अंतिए सव्व पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जाव' मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि / एवं सम्वं असणं पाणं खाइमं साइमं चम्विहं पि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए / जंपि य इमं सरीरं इ8 कंतं पियं जाव कुसंतु त्ति कटु एवं पिणं चरिमेहि उस्सासनीसालेहि वोसिरामि" त्ति कटु सलेहणाभूसणाझसिए भत्त-पाणपडियाइक्खिए पायोवगए काल प्रणवकखमाणे विहरति / [50] तदनन्तर श्री स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त हो जाने पर अत्यन्त हर्षित, सन्तुष्ट यावत् प्रफुल्लहृदय हुए। फिर खड़े होकर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की और वन्दना-नमस्कार करके स्वयमेव पांच महाव्रतों का प्रारोपण किया। फिर श्रमण-श्रमणियों से क्षमायाचना की, और तथारूप योग्य कृतादि स्थविरों के साथ शनै:शनैः विपुलाचल पर चढ़े। वहाँ मेघ-समूह के समान काले, देवों के उतरने योग्य स्थानरूप एक पृथ्वी-शिलापट्ट की प्रतिलेखना की तथा उच्चार-प्रस्रवणादि परिष्ठापन भूमि की प्रतिलेखना की। 1. यहाँ 'जाव' पद 'बंद' बंदित्ता नमसई पाठ का सूचक है। 2. यहाँ जाव 'पद' 'आइगराणं' से 'संपत्ताणं' तक के पाठ का सूचक है। 3. यहाँ जाव शब्द 'मुसावाए' से लेकर 'मिच्छादसणसल्ल' तक 18 पापस्थानवाचक पदों का सूचक है। 4. 'जाव पद 'मणन्ने मणामे धेज्जे वेसासिए सम्मए बहमए अणमए भंडकरंडगसमाणे इत्यादि द्वितीयान्त पाठ का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy