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________________ पंचमे 'मासपण्णी' वग्गे : दस उद्देसगा पंचम 'माषपर्णो' वर्ग : दश उद्देशक प्रथम वर्गानुसार माषपर्णी नामक पंचमवर्ग का निरूपण / 1. अह भंते ! मासपण्णी-मुग्गपण्णी-जीवग-सरिसव-करेणुया-काओलि-खीरकाम्रोलि-भंगिणहि-किमिरासि-भद्दमुत्थ-णंगलइ-'पयुयकिण्णा-पयोयलया-देहरेणुया-लोहीणं, एएसि णं जे जीवा मूल०? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं पालुयवग्गसरिसा / // तेवीसइमे सए : पंचमो वग्गो समत्तो // 23-5 // [1 प्र.] भगवन् ! माषपर्णी, मुद्गपर्णी, जीवक, सरसव, करेणुका, काकोली, क्षीरकाकोली, भंगी, णही, कृमिराशि, भद्रमुस्ता, लाँगली, पयोदकिण्णा, पयोदलता, (पाढहढ) हरेणुका और लोही, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? _[1 उ.] (गौतम ! ) यहाँ अालुकवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक समग्ररूप से कहने चाहिए / __ एवं एएतु पंचसु वि वग्गेसु पण्णासं उद्देसगा भाणियव्य त्ति / सव्वस्थ देवा ण उववति / तिमि लेसायो। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। ॥तेवीसतिम सयं समत्तं // 23 // इस प्रकार इन पांचों वर्गों के कुल मिला कर (मुलादि) पचास उद्देशक कहने चाहिए। विशेष है कि इन पांचों वर्गों में कथित वनस्पतियों के सभी स्थानों में देव पाकर उत्पन्न नहीं होते; इसलिए इन सब में तीन लेश्याएँ जाननी चाहिए। 1. तुलना कीजिए-मासपरिण मुग्गपण्णी जीवय (व) रसहे य रेणुया चेव / कानोली खीरकापोली तहा भंगी नही इय / / 47 / / किमिरासी भद्दमुच्छा णं गलइ पेलुया इय। किण्ह पडले य हढे हरतण्या चेव लोयाणी // 48 / / कण्हे कंदे वज्जे सूरणकंदे तहेद खल्लूरे / हुए अणतजीवा जे यावन्ने तहाविहा / / 49 / / 2. पाठान्तर-पग्रोयकिण्णा पहल पाढे-हरेण या " / ' प्रज्ञापना. पद 1, पत्र 34-2 Jain Education International : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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