________________ चउत्थे 'पाठा' वग्गे : दस उद्देसगा चतुर्थ 'पाठा'वर्ग : दश उद्देशक प्रथम वर्गानुसार चतुर्थ पाठावर्ग का निरूपण 1. अह भंते ! पाढा-मियवालुकि-मधुररस-रायवल्लि-पउम-मोढरि-वंति-चंडीणं', एएसि णं जे जीवा मूल०? एवं एस्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा आलुयवग्गसरिसा, नवरं ओगाहणा जहा वल्लीणं, सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० / // तेवीसइमे सए : चउत्थो वग्गो समत्तो // 23-4 // [1 प्र.] भगवन् ! पाठा, मृगवालंकी, मधुररसा, राजवल्ली; पद्मा, मोढरी, दन्ती और चण्डी, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आते हैं ? [1 उ.] गौतम ! इस विषय में भी पालवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना (22 वें शतक के छठे) बल्लीवर्ग के समान समझनी चाहिए / शेष सब वर्णन पूर्ववत् है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' इत्यादि / // तेईसवें शतक का चतुर्थ वर्ग समाप्त / / 17 1. देखिये प्रज्ञापना. में-पाढा मियवालुकी महुररसा चेव रायबत्ती (ल्ली) य / पउमा माढरि दंतीति चंडीक्ट्रिी ति यावरा / -----प्रज्ञापना प. 1, पत्र 34-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org