________________ तइए 'अवय' वग्गे : दस उद्देसगा तृतीय अवकवर्ग : दश उद्देशक प्रथम वर्गानुसार तृतीय अवकवर्ग का निरूपण 1. अह भंते ! प्राय'-काय-कुहुण'-कुदुक्क'-उल्वेहलिय-सफा-सज्झा-छत्ता-वंसाणियकुराणं", एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए० ? एवं एत्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा आलुबग्गे।। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। ॥ततिओ वग्गो समत्तो॥ 23-3 // [1 प्र.] भगवन् ! आय, काय, कुहणा, कुन्दुक्क, उन्वेहलिय, सफा, सज्मा, छत्ता, वंशानिका और कुरा (अथवा कुमारी); इन वनस्पतियों के मूल रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! यहाँ भी आलु-वर्ग के मूलादि समग्र दस उद्देशक कहने चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि / // तेईसवें शतक का तृतीय वर्ग समाप्त // 00 पाठान्तर-१. अवय कवय / 2. 'कुहणा अणेगबिहा प.तं...-आए काए कुहणे कुणक्के दब्यहलिया, सफाए सज्झाए छत्तोए वंसीण हिताकुरए।' -प्रज्ञापना. प. 1, पत्र 33-2 3. कुदुरुक्क तथा कुहुक्क 4. सज्जा 5. कुमाराणं 6. अधिकपाठ-नवरं ओगाहणा तालवग्गसरिसा / सेसं तं चेव / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org