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________________ बोसा शतक : उद्देशक 10 [43-1 उ.] गौतम ! नैरयिक द्वादश-समजित भी हैं और यावत् अनेक द्वादश और नोद्वादश-समजित भी हैं / [2] से केणठेणं जाव समज्जिया वि ? गोयमा ! जे णं नेरइया बारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते गं नेरइया बारससमज्जिया। जे णं नेरइया जहन्नेणं एक्केण वा दोहि वा तोहि वा, उक्कोसणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं रइया नोबारससमज्जिया / जे णं नेरइया बारसएणं; अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तोहि बा, उक्कोसेणं एक्कारसएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया बारसएण य नोबारसएण य समज्जिया। जे णं नेरइया गेहि बारसएहि पवेसणगं पविसंति ते णं रतिया बारसहि समज्जिया। जे णं नेरइया णेगेहि बारसहि; अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा दोहि वा तीहि वा, उक्कोसेणं एक्कारसरणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया बारसएहि य नोबारसएण य समज्जिया। सेतेणठेणं जाव समज्जिया वि। [43-2 प्र. भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि नै रयिक द्वादश-समजित भी हैं, यावत् अनेकद्वादश और नो-द्वादश-समर्जित भी हैं ? [43-2 उ.] गौतम ! जो नैरयिक (एक समय में एक साथ) बारह की संख्या में (नरक में जाकर) प्रवेश करते हैं, वे द्वादश-सजित हैं / जो नै रयिक जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे नो-द्वादश-समजित हैं। जो नैरयिक एक समय में बारह तथा जघन्य एक, दो, तीन तथा उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे द्वादश-नोद्वादश-सजित हैं। जो नैरयिक एक समय में अनेक बारह-बारह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश-समजित हैं। जो नै रयिक एक समय में अनेक-बारह-बारह की संख्या में तथा जघन्य एक-दो-तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश-नो-द्वादश-समजित हैं। हे गौतम ! इस कारण से कहा जाता है कि नैरयिक द्वादश-समजित यावत् अनेक-द्वादश तथा नोहादश-सजित कहलाते हैं / 44. एवं जाव थणियकूमारा। [44] इसी प्रकार (पांचों विकल्प) यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए। 45. [1] पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! पुढ विकाइया नो बारसयसमज्जिया, नो नोबारसयसमज्जिया, नो बारसरण य नोबारसएण य समज्जिया, बारसहि समज्जिया वि, बारसएहि य नोबारसएण य समज्जिया वि। [45-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक क्या द्वादश-समजित हैं, इत्यादि पूर्ववत प्रश्न ? [45-1 उ.] गौतम ! पृथ्वी कायिक न तो द्वादश-समर्जित हैं, न नो-द्वादश-सजित हैं और न ही वे द्वादश-समजित-नोद्वादश-सजित हैं, किन्तु वे अनेक-द्वादश-समजित भी हैं और अनेक द्वादशनो-द्वादश-सजित भी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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