________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-1] [187 समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, 2 एव वयासो-इच्छामि गं भंते ! तुम्भेहि अन्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उबसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। ___ अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेइ / [36] इसके बाद स्कन्दक अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। शास्त्र अध्ययन करने के बाद श्रमण भगवान् महावीर के पास आकर वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार बोले-'भगवन् ! आपकी प्राज्ञा हो तो मैं मासिकी भिक्षुप्रतिमा अंगीकार करके विचरना चाहता हूँ।' (भगवान्-) हे देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसा करो। शुभ कार्य में प्रतिबन्ध न करो (रुकावट न डालो)। 40. तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुण्णाए समाणे हट्ट जाव नमंसित्ता मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। [40] तत्पश्चात् स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान् महावीर की आज्ञा प्राप्त करके अतीव हर्षित हुए और यावत् भगवान् महावीर को नमस्कार करके मासिक भिक्षुप्रतिमा अंगीकार करके विचरण करने लगे। 41. [1] तए णं से खदए अणगारे मासियं भिवखुपडिमं अहासुत्तं महाकप्पं प्रहामग्गं अहातच्च अहासम्म कारण फासेति पालेति सोहेति तोरेति पूरेति किट्टेति अणुपालेइ प्राणाए पाराहेइ, काएण फासित्ता जाव पाराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, 2 समणं भगवं जाव नमंसित्ता एव वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुम्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिम उपसंपज्जित्ताणं विहरित्तए / अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध / [2] तं चेव। [41] तदनन्तर स्कन्दक अनगार ने सूत्र के अनुसार, मार्ग के अनुसार, यथातत्त्व (सत्यतापर्वक), सम्यक प्रकार से स्वीकृत मासिक भिक्षप्रतिमा का काया से स्पर्श किया, पालन किया, उसे शोभित (शुद्धता से आचरण = शोधित) किया, पार लगाया, पूर्ण किया, उसका कीर्तन (गुणगान) किया, अनुपालन किया, और आज्ञापूर्वक अाराधन किया। उक्त प्रतिमा का काया से सम्यक स्पर्श करके यावत् उसका आज्ञापूर्वक अाराधन करके जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ आए और श्रमण भगवान महावीर को यावत् वन्दन-नमस्कार करके यों बोले-'भगवन् ! आपकी प्राज्ञा हो तो मैं द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा स्वीकार करके विचरण करना चाहता है।' इस पर भगवान् ने कहा- 'हे देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसा सुख हो वैसा करो, शुभकार्य में विलम्ब न करो।' [41-2] तत्पश्चात् स्कन्दक अनगार ने द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा को स्वीकार किया। (सभी वर्णन पूर्ववत् कहना), यावत् सम्यक् प्रकार से प्राज्ञापूर्वक पाराधन किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org