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________________ 60] অ্যাসঙ্গি अरहंतों द्वारा महाविदेह और भरत-ऐरवतक्षेत्र में कौन-कौन से धर्म का निरूपण ? 6. एएसु णं भंते ! पंचसु महाविदेहेसु परहंता भगवंतो पंचमहन्वतियं सपडिक्कमणं धम्म पण्णवयंति? णो तिण? सम? / एएसु णं पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु पुरिम-पच्छिमगा दुवे प्ररहता भगवंतो पंचमहन्वतियं (पंचाणुब्वइयं) सपडिक्कमणं धम्मं पण्णवयंति, प्रवसेसा णं प्ररहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवयंति / एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु प्ररहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्म पण्णवयंति। [6 प्र.] भगवन् ! इन ( उपर्युक्त ) पांच महाविदेह क्षेत्रों में अरहन्त भगवन्त क्या सप्रतिक्रमण पंच-महाव्रत वाले धर्म का उपदेश करते हैं ? [6 उ.] (गौतम ! ) यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। इन (उपर्युक्त) पांच भरत क्षेत्रों में तथा पांच ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम ये दो अरहन्त भगवन्त सप्रतिक्रमण पांच महावतों वाले धर्म का उपदेश करते हैं। शेष (बाईस) अरहन्त भगवन्त चातुर्याम (चार यामरूप) धर्म का उपदेश करते हैं और पांच महाविदेह क्षेत्रों में भी अरिहन्त भगवन्त चातुर्याम-धर्म का उपदेश करते हैं। विवेचन-फलितार्थ-पांच भरत और ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम तीर्थकर भगवान् प्रतिक्रमण-सहित पंचमहावतरूप धर्म की प्ररूपणा करते हैं, शेष बाईस तीर्थकर भगवान् तथा पांच महाविदेह क्षेत्र में होने वाले तीर्थंकर भगवान् चातुर्याम-धर्म की प्ररूपणा करते हैं / भरतक्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणीकाल में चौवीस तीर्थंकरों के नाम 7. जंबुद्दोवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमोसे प्रोसप्पिणीए कति तित्थयरा पन्नत्ता? गोयमा ! चउवीसं तित्थयरा पन्नत्ता, तं जहा-उसभ-अजिय-संभव-अभिनंदण-सुमति-सुप्पभसुपास-ससि-पुष्पदंत-सोयल-सेज्जंस-वासुपुज्ज-विमल-अणंतइ-धम्म-संति-कुथु-अर-मल्लि - मुणिसुव्वयनमि-नेमि-पास-वद्धमाणा। [7 प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र (भारतवर्ष) में इस अवपिणी काल में कितने तीर्थकर हुए हैं ? [7 उ.] गौतम ! चौवीस तीर्थंकर हए हैं। यथा-१. ऋषभ, 2. अजित, 3. सम्भव, 4. अभिनन्दन, 5. सुमति, 6. सुप्रभ (पद्मप्रभ), 7. सुपार्श्व, 8. शशी (चन्द्रप्रभ), 6. पुष्पदन्त (सुविधि), 10. शीतल, 11. श्रेयांस, 12. वासुपूज्य, 13. विमल, 14. अनन्त, 15. धर्म, 16. शान्ति, 17. कुन्थु 18. अर, 19. मल्लि, 20. मुनिसुव्रत, 21. नमि, 22. नेमि, 23. पार्श्व और 24. वर्द्धमान (महावीर)। विवेचन-कतिपय तीर्थंकरों के नामान्तर-प्रस्तुत सूत्र में कितने ही तीथंकरों के दूसरे नाम का उल्लेख किया गया है / यथा-पद्मप्रभ का सुप्रभ, चन्द्रप्रभ का शशी, सुविधिनाथ का पुष्पदन्त, अरिष्टनेमि का नेमि और महावीर का वर्द्धमान नाम से उल्लेख किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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