________________ अट्ठमो उद्देसओ : 'भूमी' आठवाँ उद्देशक : (कर्म-अकर्म) भूमि (आदि-सम्बन्धी) कर्मभूमियों और अकर्मभूमियों की संख्या का निरूपण 1. कति णं भंते ! कम्मभूमीनो पन्नत्तानो ? गोयमा ! पन्नरस कम्मभूमीनो पन्नत्तानो, तं जहा--पंच भरहाई, पंच एरवताई, पंच महाविदेहाई। [1 प्र.] भगवन् ! कर्मभूमियां कितनी कही गई हैं ? [1 उ.] गौतम ! कर्मभूमियां पन्द्रह कही गई हैं। यथा-पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह। 2. कति णं भंते ! अकम्मभूमीओ पन्नत्तानो ? गोयमा ! तीसं अकम्मभूमीप्रो पन्नत्तानो, तं जहा-पंच हेमवयाई, पंच हेरण्णवयाई, पंच हरिवासाई, पंच रम्मगवासाई, पंच देवकुरूश्रो, पंच उत्तरकुरूयो। [2 प्र.] भगवन् ! अकर्मभूमियां कितनी कही गई हैं ? |2 उ. | गौतम! अकर्मभूमियां तीस कही गई हैं। यथा-पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु, और पांच उत्तरकुरु / / विवेचन-कर्मभूमि और अकर्मभूमि-जिन क्षेत्रों में असि (शस्त्रास्त्र और युद्धविद्या,) मसि (लेखन और अध्ययन-अध्यापनादि) तथा कृषि (खेतीबाड़ी तथा आजीविका के अन्य उपाय) रूप कर्म (व्यवसाय) हों, उन्हें 'कर्मभूमि' कहते हैं / जहाँ असि, मषि, कृषि आदि न हों, किन्तु कल्पवृक्षों से निर्वाह होता हो, उन्हें 'अकर्मभूमि' कहते हैं। ___ कर्मभूमियां कहाँ-कहाँ?—जम्बूद्वीप में एक भरत, एक ऐरवत और एक महाविदेह है। धातकीखण्डद्वीप में दो भरत, दो ऐरवत और दो महाविदेह हैं / अर्धपुष्करद्वीप में दो भरत, दो ऐरवत और दो महाविदेह हैं / इस प्रकार कुल 15 कर्मभूमियां हैं। तीस अकर्मभूमियां कहाँ-कहाँ ?–तीस अकर्मभूमियों में से एक हैमवत, एक हैरण्यवत, एक हरिवर्ष, एक रम्यकवर्ष, एक देवकुरु और एक उत्तरकुरु, ये छह क्षेत्र जम्बूद्वीप में हैं और इनसे दुगुने-बारह क्षेत्र धातकीखण्डद्वीप में और बारह क्षेत्र अर्धपुष्करद्वीप में हैं।' 1. भगवती, विवेचन (पं. घेवरचन्द जी) भा. 6, पृ. 2901 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org