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________________ बीसवां शतक : उद्देशक 51 (2) अथवा कदाचित् सर्वमृदु, एकदेशगुरु, एकदेशलघु, एकदेशशीत, एकदेशउष्ण, एकदेशस्निग्ध और एकदेशलक्ष होता है / रूक्ष की तरह 'मृदु' शब्द के साथ भी पूर्ववत् 1644 = 64 भंग होते हैं / (3) अथवा कदाचित् सर्वगुरु, एकदेशकर्कश, एकदेशमृदु, एकदेशशीत, एकदेशउष्ण, एकदेशस्निग्ध, और एकदेशरूक्ष, इस प्रकार 'गुरु' के साथ भी पूर्ववत् 16x4-64 भंग कहने चाहिए / (4) अथवा कदाचित् सर्वलघु, एकदेशकर्कश, एकदेशमृदु, एकदेशशीत, एकदेशउष्ण, एकदेशस्निग्ध, एकदेशरूक्ष, इस प्रकार 'लघु' के साथ भी पूर्ववत् 16 x 4 = 64 भंग कर्ने चाहिये। (5) कदाचित् सर्वशीत, एकदेशकर्कश, एकदेशमृदु, एकदेशगुरु, एकदेशलघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेशरूक्ष, इस प्रकार 'शीत' के साथ भी 64 भंग कहने चाहिये। (6) कदाचित् सर्वउष्ण, एकदेश कर्कश, एकदेशमृदु , एकदेशगुरु, एकदेश लघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इस प्रकार 'उष्ण' के साथ भी 64 भंग कहने चाहिये / (7) कदाचित् सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण होता है; इस प्रकार 'स्निग्ध' के साथ भी 64 भंग होते हैं। (8) कदाचित् सर्वरूक्ष, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण; इस प्रकार 'रूक्ष' के साथ भी 64 भंग कहने चाहिए। यावत् सर्वरूक्ष, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, अनेकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण होता है। इस प्रकार ये सब मिलकर 8464 = 512 भंग सप्तस्पर्शी (बादरपरिणामी अनन्तप्रदेशी स्कन्ध) के होते हैं।। यदि वह पाठ स्पर्शवाला होता है, तो (1. I) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है (इत्यादि, इसके) चार भंग (कहने चाहिए)। (II) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण तथा एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इत्यादि चार भंग कहने चाहिये। (HI) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इत्यादि चार भंग। (iv) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, ये चार भंग / इस प्रकार इन चार चतुष्कों के 16 भंग होते हैं / अथवा (2) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इस प्रकार 'गुरु' पद को एकवचन में और 'लघु पद को बहुवचन में रखकर पूर्ववत् 16 भंग कहने चाहिये / (3) कदाचित एकदेश कर्कश, एकदेश मद, अनेकदेश गरु, एकदेश लघ, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इसके भी 16 भंग (पूर्ववत्) होते हैं / (4) कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इसके भी पूर्ववत् 16 भंग कहने चाहिये / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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