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________________ 42] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र होते हैं / (4) कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष यहां भी कुल सोलह भंग होते हैं / ये सब मिल कर 16+1+1+16 =64 भंग होते हैं। [1-64] अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वशीत, एकदेश-गुरु, एकदेश-लघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है; इस प्रकार यावत्स र्वमृदु सर्व उष्ण, अनेकदेशलघु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं; यह चौसठवा भंग है। इस प्रकार यहाँ भी चौसठ भंग होते हैं। [1-64] अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वस्निग्ध, एकदेश गुरु, एकदेश लघ, एकदेश शीत और एकदेश-उष्ण होता है; यावत् कदाचित् सर्वमृदु, सर्वरूक्ष, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, अनेकदेश शीत और अनेकदेश-उष्ण होता है। यह चौसठवाँ भंग है। इस प्रकार यहाँ भी 16 +16+16+ 16=64 भंग होते हैं। कदाचित् सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश उष्ण होता है, इस प्रकार यावत्-सर्वलघु, सर्व उष्ण, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं; यह चौसठवाँ भंग है / यहाँ भी चौसठ भंग होते हैं / [1-64] कदाचित् सर्वगुरु, सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण होता है; यावत् कदचित् सर्वलघु, सर्वरूक्ष अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण होते हैं; यह चौसठवाँ भंग है। इस प्रकार यहाँ भी 64 भंग होते हैं / [1-64] कदाचित् सर्वशीत, सर्वस्तिग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृद्, एकदेश गुरु और एकदेश लघु होता है; यावत् कदाचित् सर्वउष्ण, सर्वरूक्ष, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेशमृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु होता है / यह चौसठवाँ भंग है / इस प्रकार यहाँ भी चौसठ भंग होते हैं / षट्-स्पर्श-सम्बन्धी ये सब 6446 = 384 भंग होते हैं। - यदि वह सात स्पर्श वाला होता है तो (1) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है। (2-3-4) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध, और अनेकदेश रूक्ष होते हैं (इस प्रकार चार भंग होते हैं। ), (2) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रुक्ष होता है, इत्यादि चार भंग। (3) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघ, अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एक देश रूक्ष, इत्यादि चार भंग तथा (4) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष इत्यादि चार भंग; ये सब मिलाकर 444-16 भंग होते हैं / अथवा कदाचित् (2) सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है। इस प्रकार 'गुरु' पद को एकवचन में और 'लधु' पद को अनेक (बहु-) वचन में रखकर पूर्ववत् यहाँ भी सोलह भंग कहने चाहिये / अथवा कदाचित् 3. सर्वकर्कश, अनेकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध एवं एकदेश रूक्ष, इत्यादि, ये भी सोलह भंग कहने चाहिये। (4) अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, ये सब मिलकर सोलह भंग कहने चाहिये / इस प्रकार ये 1644-64 भंग 'सर्वकर्कश' के साथ होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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