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________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ये सब मिलाकर (1644 =64) चौसठ भंग 'कर्कश' और 'मृदु' को एकवचन में रखने से होते हैं। इन्हीं भंगों में 'कर्कश' को एकवचन में और 'मृदु' को बहुवचन में रखकर 64 भंग कहने चाहिए। अथवा उन्हीं भंगों में 'कर्कश' को बहुवचन में और 'मृदु' को एकवचन में रखकर पूर्ववत् 64 भंग कहने चाहिये / अथवा 'कर्कश' और मृदु दोनों को बहुवचन में रख कर फिर 64 भंग कहने चाहिये; यावत् अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष; यह अन्तिम भंग है। ये सब मिला कर अष्टस्पर्शी भंग 256 होते हैं। ___ इस प्रकार बादर परिणाम वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के सर्वसंयोगों के कुल 1266 भंग होते हैं। विवेचन बादर परिणामी अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श सम्बन्धी एक हजार दो सौ छियानवे भंग....इसके स्पर्श-सम्बन्धी चतु:संयोगी 16, पंचसंयोगी 128, पटसंयोगी 384, सप्तसंयोगी 512, और अष्टसंयोगी 256, ये सब मिला कर बादर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के स्पर्श के 1266 भंग होते हैं। एक परमाणु से लेकर सूक्ष्म अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक स्पर्श सम्बन्धी 268 भंग होते हैं ।परमाणु से लेकर बादर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के कुल 6470 भंग होते हैं, जो पहले गिना दिये हैं।' 15. कतिविधे णं भंते ! परमाण पन्नत्त? गोयमा! चउबिहे परमाणू पन्नते, तं जहा–दव्वपरमाणू खेत्तपरमाणू कालपरमाणू भावपरमाणू। [15 प्र.] भगवन् ! परमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? [15 उ.] गौतम ! परमाण चार प्रकार का कहा गया है / यथा द्रव्यपरमाणु, क्षेत्रपरमाणु, कालपरमाणु और भावपरमाणु / 16. दव्वपरमाणू णं भंते ! कतिविधे पन्नते? गोयमा ! चउब्विहे पन्नते, तं जहा---प्रच्छेज्जे अभेज्जे अडझे अमेज्झे / [16 प्र.] भगवन् ! द्रव्यपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? [16 उ.] गौतम ! (द्रव्यपरमाणु) चार प्रकार का कहा गया है / यथा अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य। 17. खेत्तपरमाणू णं भंते ! कतिविधे पन्नते? गोयमा ! चउन्विहे पन्नत्ते, तं जहा-अगड्ढे अमझे अपएसे अविभाइमे। 617 प्र.] भगवन् ! क्षेत्रपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? (17 उ.] गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है। यथा अनर्द्ध, अमध्य, अप्रदेश और अविभाज्य। 1. वियाहपण्णत्ति सुत्त भा. 2, पृ. 869-70 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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