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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-१] [ 181 अप्पाणं संजोएइ, तिरिय० मणुय० देव 0, प्रणाइयं च णं अगवदग्गं दोहमद्ध चाउरतं संसारफतारं अणुपरियट्टइ, से तं मरमाणे वड्ढइ / से तं बालमरणे / [26] 'बह बालमरण क्या है ?' बालमरण बारह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है---(१) बलयमरण (बलन्मरण---तड़फते हुए मरना), (2) वार्तमरण (पराधीनतापूर्वक या विषयवश होकर रिब रिब कर मरना), (3) अन्तःशल्यमरण (हृदय में शल्य रखकर मरना, या शरीर में कोई तीखा शस्त्रादि घुस जाने से मरना अथवा सन्मार्ग से भ्रष्ट होकर मरना), (4) तद्भवमरण (मरकर उसी भव में पुनः उत्पन्न होना, और मरना), (5) गिरिपतन (6) तरुपतन, (7) जलप्रवेश (पानी में डूबकर मरना), (8) ज्वलनप्रबेश (अग्नि में जलकर मरना), (9) विषभक्षण (विष खाकर मरना), (10) शस्त्रावपाटन (शस्त्राघात से मरना), (11) वहानस मरण (गले में फांसी लगाने या वृक्ष आदि पर लटकने से होने वाला मरण) और (12) गध्रपृष्ठमरण (गिद्ध आदि पक्षियों द्वारा पीठ आदि शरीरावयवों का मांस खाये जाने से होने वाला मरण)। हे स्कन्दक ! इन बारह प्रकार के बालमरणों से मरता हुअा जीव अनन्त बार नारक भवों को प्राप्त करता है, तथा नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, इस चातुर्गतिक अनादि-अनन्त संसाररूप कान्तार (वन) में बार-बार परिभ्रमण करता है। अर्थात्-इस तरह बारह प्रकार के बालमरण से मरता हुआ जीव अपने संसार को बढ़ाता है। यह है--वालमरण का स्वरूप / 27. से कि तं पंडियमरणे ? पंडियमरणे दुविहे प०, तं.---पायोवगमणे य भत्तपच्चवाखाणे य / [27] पण्डितमरण क्या है ? पण्डितमरण दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है-पादपोषगमन (वृक्ष की कटी हुई शाखा की तरह स्थिर (निश्चल) होकर मरना) और भक्त-प्रत्याख्यान (यावज्जीवन तीन या चारों आहारों का त्याग करने के बाद शरीर की सार संभाल करते हुए जो मृत्यु होती है)। 28. से कि तं पापोवगमणे ? पापोवगमणे दुविहे प०, तं जहा-नीहारिमे य अनीहारिमे य, नियमा अप्पडिकम्मे / से तं पानोवगमणे। [28] पादपोपगमन (मरण) क्या है ? पादपोपगमन दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है-निर्हारिम और अनिर्हारिम / यह दोनों प्रकार का पादपोपगमन-मरण नियम से अप्रतिकर्म होता है। यह है-पादपोपगमन का स्वरूप। 26. से कि तं भत्तच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पं०, तं जहा-नीहारिमे य अनोहारिमे य, नियमा सपडिकम्मे / से तं भत्तपच्चक्खाणे। [26) भक्तप्रत्याख्यान (मरण) क्या है ? भक्तप्रत्याख्यान मरण दो प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार है--निभरिम और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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