________________ छठा उद्देशक सौधर्मादि कल्प से ईषत्प्रारभारा पृथ्वी तक की दो-दो प्रध्वियों के बीच में मरणसमुदघात करके सौधर्मादिकल्प से ईषत्प्रारभारा पृथ्वी तक पृथ्वीकायिकरूप में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वीकायिक द्वारा पूर्व-पश्चात् पाहार-उत्पाद निरूपण 46, सौधर्मादिकल्प से ईषत्प्रारभारा पृथ्वी तक के बीच में मरणसमुदघात करके रत्नप्रभा से अधःसप्तम पृथ्वी तक पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वीकायिक की पूर्व-पश्चात् आहार-उत्पाद-प्ररूपणा 47, पृथ्वीकायिक विषयक सूत्रों के अतिदेशपूर्वक अप्कायिक विषयक पूर्व-पश्चात् आहार-उत्पाद निरूपण 49, पृथ्वीकायिक-विषयक सूत्रों के अतिदेशपूर्वक अप्कायिक जीवविषयक (विशिष्ट परिस्थिति में) पूर्व-पश्चात् माहारउत्पाद निरूपण 50, सत्तरहवें शतक के दसवें उद्देशक के अनुसार वायुकायिक जीवों के विषय में पूर्व-पश्चात आहार-उत्पाद विषयक प्ररूपणा 51 / सप्तम उद्देशक बंध के तीन भेद और चौवीस दण्डकों में उनकी प्ररूपणा 52, अष्टविध कर्मों में त्रिविध बन्ध एवं उनकी चौवीस दण्डकों में प्ररूपणा 53, पाठों कमों के उदयकाल में प्राप्त होने वाले बंधत्रय का चौवीस दण्डकों में निरूपण 53. वेदत्रय तथा दर्शनमोहनीय चारित्रमोहनीय में त्रिविध बन्ध प्ररूपणा 54, शरीर, संज्ञा, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान एवं ज्ञानाज्ञान विषयों में त्रिविधबंध प्ररूपणा 55 / आठवाँ उद्देशक कर्मभमियों और अकर्मभूमियों की संख्या का निरूपण 58, अकर्मभूमि और कर्मभूमि के विविध क्षेत्रों में उत्सपिणी और अवसर्पिणी काल के सद्भाव-प्रभाव का निरूपण 59, अरहंतों द्वारा महाविदेह और भरतऐवत क्षेत्र में कौन-कौन से धर्म का निरूपण ? 60, भरतक्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणी काल में चौवीस तीर्थकरों के नाम 60, चौवीस तीर्थंकरों के अंतर तथा तेईस जिनान्तरों में कालिकत के व्यवच्छेद-अव्यवच्छेद का निरूपण 61, भ. महावीर और शेष तीर्थकरों के समय में पूर्वश्रुति की अविच्छिन्नता की कालावधि 62, भगवान महावीर और भावी तीर्थकरों में अन्तिम तीर्थंकर के तीर्थ की अविच्छिन्नता की कालावधि 62, तीर्थ और प्रवचन क्या और कौन ? 64, निर्ग्रन्थ-धर्म में प्रविष्ट उग्रादि क्षत्रियों द्वारा रत्नत्रय साधना से सिद्धगति या देवगति में गमन तथा चतुर्विध देवलोक-निरूपण 64 / नौवाँ उद्देशक चारणमुनि के दो प्रकार : विद्याचारण और जंघाचारण 66, विद्याचारण लब्धि समुत्पन्न होने से विद्याचारण कहलाता है 66, विद्याचारण की शीघ्र, तिर्यग एवं ऊर्ध्वगति-सामर्थ्य तथा विषय 67, जंघाचारण का स्वरूप 69, जंघाचारण की शीघ्र, तिर्यक और ऊर्ध्वगति का सामर्थ्य और विषय 70 / दसवाँ उद्देशक चौवीस दण्डकों में सोपक्रम एवं निरुपक्रम आयुष्य की प्ररूपणो 72, चौवीस दण्डकों में उत्पत्ति और उद्वर्तना की आत्मोपक्रम-परोपक्रम आदि विभिन्न पहलुओं से प्ररूपणा 73, चौवीस दण्डकों और सिद्धों में कति-अकति-प्रवक्तव्य-संचित पदों का यथायोग्य निरूपण 75, कति-प्रकति-अवक्तव्य-संचित यथायोग्य चौबीस दण्डकों और सिद्धों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा 78, चौवीस दण्डकों और सिद्धों में षट्क-समजित प्रादि पांच विकल्पों का यथायोग्य निरूपण 79, षटक-सजित आदि से विशिष्ट चौवीस दण्डकों और सिद्धों के अल्पबहत्व - [107 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org