________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-१] [173. __नो संचाएइपमोक्खमक्खाइउ-प्रमोक्ष = उत्तर (जिससे प्रश्नरूपी बन्धन से मुक्त हो सके वह-उत्तर) कह (दे) न सका।' बेसालियसावए = विशाला = महावीरजननी, उसका पुत्र वैशालिक भगवान्, उनके वचनश्रवण का रसिक = श्रावक धर्म-श्रवणेक्छुक / 2 स्कन्दक का भगवान् की सेवा में जाने का संकल्प और प्रस्थान 17. तए णं सावत्थीए नयरोए सिंघाडग जाव महापहेसु महया जणसम्महे इ वा जणबूहे इ वा परिसा निग्गच्छद / तए णं तस्स खंदयस्स कच्चायणसगोत्तस्स बहणणस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म इमेयारूवे प्रज्झथिए चितिए पत्यिए मगोगए संकापे समुपज्जित्था-- 'एवं खलु समणे भगवं महावीरे, कयंगलाए नयरीए बहिया छत्तपलासए चेइए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ / तं गच्छामि गं, समणं भगवं महावीरं वदामि नमसामि सेयं खलु में समणं भगवं महावीरं वंदित्ता गमंसित्ता सरकारेत्ता सम्माणित्ता कल्लाणं मंगलं देवतं चेतियं पज्जुवासित्ता इमाइं च णं एयारवाई अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छित्तए' ति कटु एवं संपेहेर, 2 जेणेव परिवायावसहे तेणेव ज्वागच्छइ, 2 ता तिदंडं च कुडियं च कंचणियं च करोडियं च भिसियं च केसरियं च छन्नालयं च अंकुसयं च पवित्तयं च गणेत्तियं च छत्तयं च वाहणाोय पाउयाप्रो य धाउरत्ताओ य गेहइ, गेहइत्ता परिवायावसहाम्रो पडिनिक्षमई, पडिनिक्खमित्ता तिदंड-कुडिय-कंचणिय-करोडिय-भिसिय-केसरियछन्नालय-अंकुसय-पवित्तय-गणेत्तियहत्थगए छत्तोवाहणसंजुत्ते धाउरत्तवत्थपरिहिए सावत्थीए नगरोए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। [17] उस समय श्रावस्ती नगरी में जहाँ तीन मार्ग, चार मार्ग, और बहुत-से मार्ग मिलते हैं, वहाँ तथा महापथों में जनता की भारी भीड़ व्यूहाकार रूप में चल रही थी, लोग इस प्रकार बातें कर रहे थे कि 'श्रमण भगवान् महावीरस्वामी कृतंगला नगरी के बाहर छत्रपलाशक नामक उद्यान में पधारे हैं।' जनता (परिषद्) भगवान् महावीर को वन्दना करने के लिए निकली। उस समय बहुत-से लोगों के मुह से यह (भगवान् महावीर के पदार्पण की) बात सुनकर और उसे अवधारण करके उस कात्यायन गोत्रीय स्कन्दक तापस के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय, 1. भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक : 114 2. वही, अ. वृत्ति, पत्रांक 114-115 3. भगवती सूत्र, अ. वृत्ति, पत्रांक 114-115 में यहाँ अन्य पाठ भी उद्धृत है "जणबोले इ वा, जणकलकले इ वा, जणुम्मी इवा, जणुक्क लिया इ वा, जमसन्निवाए इबा, बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४–एवं खलु देवाणु प्पिया सवणे 3 आइगरे जाव संपाविउकामे पुवाणुपुब्बि चरमाणे, गामाणुगाम दुइज्जमाणे कयंगलाए नगरीए छत्तपलासर चेइए अहापडिरूवं उग्गहं.....""जाव विहरइ / " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org