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________________ (ख) वाचिक-४. मिथ्या (असत्य), 5. ताना मारना, 6. कटुवचन, 7. असंगत वाणी, (ग) मानसिक-८. परद्रव्य की अभिलाषा, 9. अहितचिन्तन, 10. व्यर्थ प्राग्रह / इस प्रकार सभी मनीषियों ने पाप से मुक्त होने का संदेश दिया है / आध्यात्मिक शक्ति आज का मानव भौतिक विज्ञान की शक्ति से न्यूनाधिक रूप में भलीभांति परिचित है। विज्ञान की शक्ति से मानव आकाश में पक्षी की भांति उड़ान भर रहा है, मछली की भांति अनन्त जलराशि पर तैर रहा है और द्रत गति से भूमि पर दौड़ रहा है। टेलीफोन, टेलीविजन, रेडियो प्रादि के आविष्कार से विश्व सिमट गया है / अणु बम, न्यूट्रोन बम और विविध प्रकार की गैसों के आविष्कार से विश्व को विज्ञान ने विनाश की भूमिका पर भी पहुँचा दिया है / पर अतीत काल में भौतिक अनुसन्धान का प्रभाव था। उस समय प्राध्यात्मिक साधना के द्वारा उन साधकों ने वह अपूर्व शक्ति अजित की थी जिससे वे किसी के अन्तर्मानस के विचारों को जान सकते थे, विविध रूपों का सृजन कर सकते थे / जंघाचारण, विद्याचारण लब्धियों से अनन्त आकाश को कुछ ही क्षणों में नाप लेते ये / भगवतीसूत्र में इस प्रकार की आध्यात्मिक शक्तियों को उजागर करने वाले अनेक प्रसंग आये हैं। भगवतीसूत्र शतक 3, उद्देशक 5 में एक प्रसंग है-गणधर गौतम ने भगवान महावीर से पूछा कि एक श्रमण विराटकाय स्त्री का रूप बना सकता है ? यदि बना सकता है तो कितनी स्त्रियों का रूप बना सकता है ? भगवान ने कहा--क्रियलब्धिधारी श्रमण में इतना अधिक सामर्थ्य है कि वह सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को स्त्रियों के रूपों से भर सकता है, पर निर्माण करने की शक्ति होने पर भी वह इस प्रकार स्त्रियों का निर्माण नहीं करता। भगवती सूत्र शतक 3, उद्देशक 4 में गौतम ने पूछा-बक्रिय शक्ति का प्रयोग प्रमत्त श्रमण करता है या अप्रमत्त श्रमण करता है ? भगवान महावीर ने कहा- क्रियलब्धि का प्रयोग प्रमत्त श्रमण करता है, अप्रमत्त श्रमण नहीं करता। शतक 7, उद्देशक 9 में यह भी बताया है कि प्रमत्त श्रमण ही विविध प्रकार के विविध रंग के रूप बना सकता है / वह चाहे जिस रूप में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श में परिवर्तन कर सकता है। भगवतीसूत्र शतक 20, उद्देशक 9 में गौतम की जिज्ञासा पर भगवान् ने कहा-आकाश में गमन करने की शक्ति चारणलब्धि में रही हई है। वह चारणलब्धि जंघाचारण और विद्याचारण के रूप में दो प्रकार की है। विद्याचा रणलब्धि निरन्तर बेले की तपस्या से और पूर्व नामक विद्या से प्राप्त होती है / इस लब्धि से मुनि तीन बार चुटकी बजाने जितने समय में तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन परिधि वाले जम्बूद्वीप की तीन बार प्रदक्षिणा कर लेता है। जंघाचारणलब्धि तीन-तीन उपवास की निरन्तर साधना करने पर प्राप्त होती है और इस लब्धि की शक्ति से तीन बार चटकी बजाये इतने समय में इक्कीस बार जम्बूद्वीप की प्रदक्षिणा कर लेता है / इस द्रुत गति के सामने अाधुनिक युग के राकेट की गति भी कितनी कम है ! इसी तरह अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान और केवलज्ञान के द्वारा अन्तर्मानस में रहे हुए विचारों को साधक किस प्रकार जानता है ? शतक 3, उद्देशक 4 तथा शतक 14, उद्देशक 10; शतक 5, उद्देशक 4 प्रादि में इस विषय का विस्तार से निरूपण है। प्राध्यात्मिक शक्ति जब जाग जाती है तब हस्तामलकवत् चाहे रूपी पदार्थ हो या प्ररूपी पदार्थ हो, उसे वह सहज ही जान लेता है / उससे कोई भी वस्त छिपी नहीं रह पाती। [40] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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