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________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 14 / सुहमवाउकाइयस्स पज्जतगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा 15 / तस्स चेव अपज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया 16 / तस्स चेव पज्जत्तगस्स उक्कोसिया० विसेसाहिया 17 / एवं सुहुमतेउकाइपस्स वि 18-19-20 / एवं सुहुमनाउकाइयस्स वि 21-22-23 / एवं सुहमपुढविकाइयस्स वि 24-25-26 / एवं बादरवाउकाइयस्स वि 27-28-29 / एवं बायरते. उकाइयस्स वि 30-31-32 / एवं बादरआउकाइयस्स वि 33-34-35 / एवं बादरपुढविकाइयस्स वि 36-37-38 / सव्धेसि तिविहेणं गमेणं भाणितव्वं / बादरनिगोदस्स पज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा 39 / तस्स चेव अपज्जतगस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया 40 / तस्स चेव पज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया 41 / पत्तेयसरीरबादरवणस्सतिकाइयस्स पज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा 42 / तस्स चेव अपज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा 43 / तस्स चेव पज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा 44 / [22 प्र.] भगवन् ! इन सूक्ष्म-बादर, पर्याप्तक-अपर्याप्तक, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जोवों को जघन्य और उत्कृष्ट प्रवगाहनामों में से किसकी अवगाहना किसको अवगाहना से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक होती है ? [22 उ.] गौतम ! 1. सबसे अल्प, अपर्याप्त सूक्ष्मनिगोद की जघन्य-अवगाहना है / 2. उससे असंख्य गुणी है- अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकायिक की जघन्य अवगाहना। 3. उससे अपर्याप्त सूक्ष्म अग्निकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्य गुणो है / 4. उससे अपर्याप्त सूक्ष्म प्रकायिक को जघन्य अवगाहना असंख्य गुणो है। 5. उससे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वोकायिक को जघन्य अवगाहना असंख्य गुणो है। 6. उससे अपर्याप्त बादर वायुकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यगुणी है। 7. उससे अपर्याप्त बादर अग्निकायिक को जघन्य अवगाहना असंख्य गुणी है। 8. उससे अपर्याप्त बादर अप्कायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुनी है / 6. उससे अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है / 10.11. उससे अपर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की और बादर निगोद की जघन्य अवगाहना दोनों को परस्पर तुल्य और असंख्यातगुणी है। 12. उससे पर्याप्त सूक्ष्म निगोद को जघन्य अवगाहना असंख्यात-गुणो है। 13. उससे अपर्याप्त सूक्ष्म निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है / 14. उससे पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है / 15. उससे पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है / 16. उससे अपर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक को उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है। 17. उससे पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है / १८-१६-२०.उससे पर्याप्त सूक्ष्म अग्निकायिक की जघन्य, अपर्याप्त सूक्ष्म अग्निकायिक की उत्कृष्ट तथा पर्याप्त सूक्ष्म अग्निकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यात-गुणी एवं विशेषाधिक है। 21-22-23. उससे पर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिक की जघन्य, अपर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिक को उत्कृष्ट तथा पर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुण एवं विशेषाधिक है। 24-25-26. इसी प्रकार उससे पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक को जघन्य, उससे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्त्रोकायिक को उत्कृष्ट तथा उससे पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वोकायिक को उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यगणी तथा विशेषाधिक होती है। 27-28-26. उससे पर्याप्त बादर वायुकायिक को जघन्य, अपर्याप्त बादर वायुकायिक को उत्कृष्ट एवं पर्याप्त बादर वायुकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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